'हलीम' उवाच
पुष्पों से लेकर मधु मुकुंद, मिटटी की सोंधी लिए गन्ध,
कण-कण को आज भिगोने को, आया कैसा अद्भुत वसन्त।
भागे भीतर सब बाल वृन्द, मुंह फुलाए बैठी पतंग,
खग, मृग, नर सब हुए दंग, वर्षा लाया क्यों यह वसंत।
दिनकर की मादक धुप नहीं है अभी दूर तक दिग दिगन्त,
बूंदों से सब कुछ धुल हुआ, है अबकी गीला-सा वसन्त।
फागुन की मस्त जवानी का, नभ में आया क्या घोल रंग,
महक उड़ाती चले पवन भी, सबसे सुन्दर है यह वसन्त।
सागर में आग कहीं देखी, ऐसा संगम है यह वसन्त,
सब ऋतुओं के रूप दिखाता, ऋतु-वल्लभ है यह वसन्त।
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'
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