'हलीम' उवाच
मेरे अहसान को अक्सर दिखावा क्यूं समझता है?
मेरी हर कोशिशों को वो छलावा क्यूं समझता है?
गिरा जब घर किसी का तो सना हूं गर्द से मैं भी,
वो इस तूफ़ान को मेरा बुलावा क्यूं समझता है?
किया वादा अगर मैंने कि ये तस्वीर बदलूंगा,
मेरे वादों को पर जाने वो दावा क्यूं समझता है?
उठा हूं गर्दिशों से तो ज़मीनी बात करता हूं,
न जाने ऐसी बातों को तराना क्यूं समझता है?
लहू के आखिरी क़तरे पे होगा नाम सेवा का,
वो इस सादाबयानी को रिझाना क्यूं समझता है?
जिसे हो मुल्क की चिंता फिकर करता हो लोगों की,
उसी को हाय! दुश्मन ये ज़माना क्यूं समझता है?
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'
हमारे कर्मयोगी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के व्यक्तित्व को समर्पित...
मेरे अहसान को अक्सर दिखावा क्यूं समझता है?
मेरी हर कोशिशों को वो छलावा क्यूं समझता है?
गिरा जब घर किसी का तो सना हूं गर्द से मैं भी,
वो इस तूफ़ान को मेरा बुलावा क्यूं समझता है?
किया वादा अगर मैंने कि ये तस्वीर बदलूंगा,
मेरे वादों को पर जाने वो दावा क्यूं समझता है?
उठा हूं गर्दिशों से तो ज़मीनी बात करता हूं,
न जाने ऐसी बातों को तराना क्यूं समझता है?
लहू के आखिरी क़तरे पे होगा नाम सेवा का,
वो इस सादाबयानी को रिझाना क्यूं समझता है?
जिसे हो मुल्क की चिंता फिकर करता हो लोगों की,
उसी को हाय! दुश्मन ये ज़माना क्यूं समझता है?
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'