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बुधवार, 19 अक्तूबर 2011


आप ऐसे न मुझको छला कीजिए

करिए वादा अगर तो मिला कीजिए ।।

कोई भी ना रहे प्यार के दरमियाँ

अब ख़तम बीच का फ़ासला कीजिए ।।



काली गहरी अमावस की रातों में भी

बन के दीपक हृदय में जला कीजिए ।।

अब तो गलियों में भी चर्चे होने लगे

साथ मेरे नहीं अब चला कीजिए ।।



देख भँवरे दीवाने से हो जाएंगे

आप बन कर कली मत खिला कीजिए ।।

आपका है ये बस, आपका है
कोई शिक़वा अगर हो, गिला कीजिए ।।

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011



'हलीम' उवाच

स दशहरा ये बात सोचें कि रावन का पुतला दहन कहाँ तक उचित है, तबकि जब हम हर साल इसे जलाते तो हैं लेकिन इसके किसी पहलू पर विचार नहीं करते. रावन जिस बेचारे ने इतनी विद्या और ज्ञान होने के बावजूद अपनी केवल एक गलती की सजा मौत पाई, और आज तक वो सजा भुगत रहा है कि हम उसका पुतला जलाते चले आ रहे हैं. वो जिस सम्मान का हक़दार था वो उसे नहीं मिला. तो जरा सोचिये हम और आप जो इतनी गलतियाँ करते है उनकी सजा क्या रावन से अधिक या समतुल्य नहीं होना चाहिए?