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रविवार, 14 फ़रवरी 2016

'हलीम' उवाच

प्रत्यय
परिभाषा:
वे शब्दांश जो किसी शब्द के अन्त में लगकर उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते
हैं,
अर्थात् नये अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे –
समाज + इक = सामाजिक
सुगन्ध + इत = सुगन्धित
भूलना + अक्कड़ = भुलक्कड़
मीठा + आस = मिठास
अतः प्रत्यय लगने पर शब्द एवं शब्दांश में सन्धि नहीं होती बल्कि शब्द के अन्तिम
वर्ण में
मिलने वाले प्रत्यय के स्वर की मात्रा लग जायेगी, व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है जैसे
लोहा + आर = लुहार
नाटक + कार = नाटककार
प्रकार:
हिन्दी में प्रत्यय मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं-
(i)कृदन्त प्रत्यय (ii)तद्धित प्रत्यय
1. कृदन्त प्रत्यय:
वे प्रत्यय जो धातुओं अर्थात् क्रिया पद के मूल रूप के साथ लगकर नये शब्द का निर्माण
करते हैं कृदन्त या कृत प्रत्यय कहलाते हैं। हिन्दी क्रियाओं में अन्तिम वर्ण ‘ना’
का लोपकर शेष
शब्द के साथ प्रत्यय का योग किया जाता है। कृदन्त या कृत प्रत्यय 5 प्रकार के होते हैं-
(i)कर्त्तुवाचक:
वे प्रत्यय जो कर्त्तुवाचक शब्द बनाते हैं जैसे-
अक = लेखक, नायक, गायक,
पाठक
अक्कड़ = भुलक्कड़, घुमक्कड़, पियक्कड़, कुदक्कड़
आक = तैराक, लड़ाक
आलू = झगड़ाल
आकू = लड़ाक
आड़ी = खिलाड़ी
इयल = अडि़यल, मरियल
एरा = लुटेरा, बसेरा
ऐया = गवैया,
ओड़ा = भगोड़ा
ता = दाता,
वाला = पढ़नेवाला
हार = राखनहार, चाखनहार
(ii)कर्मवाचक = वे प्रत्यय जो
कर्म के अर्थ को प्रकट करते हैं
औना = खिलौना (खेलना)
नी = सूँघनी (सूँघना)
(iii)करणवाचक = वे प्रत्यय जो
क्रिया के कारण को बताते हैं
आ = झूला (झूलना)
ऊ = झाडू (झाड़ना)
न = बेलन (बेलना)
नी = कतरनी (कतरना)
(iii)भाववाचक = वे प्रत्यय जो
क्रिया से भाववाचक संज्ञा का निर्माण करते हैं।
अ = मार, लूट, तोल,
लेख
आ = पूजा
आई = लड़ाई, कटाई, चढ़ाई, सिलाई
आन = मिलान, चढान, उठान,
उड़ान
आप = मिलाप, विलाप
आव = चढ़ाव, घुमाव, कटाव
आवा = बुलावा
आवट = सजावट, लिखावट, मिलावट
आहट = घबराहट, चिल्लाहट
ई = बोली
औता = समझौता
औती = कटौती, मनौती
ती = बढ़ती, उठती, चलती
त = बचत, खपत, बढ़त
न = फिसलन, ऐंठन
नी = मिलनी
(v) क्रिया बोधक = वे प्रत्यय
जो क्रिया का ही बोध कराते हैं
हुआ = चलता हुआ, पढ़ता हुआ
2. तद्धित प्रत्यय:
वे प्रत्यय जो क्रिया पदों के अतिरिक्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों के साथ
लगकर
नये शब्द का निर्माण करते हैं उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं। जैसे
छात्र + आ = छात्रा
देव + ई = देवी
मीठा+आस = मिठास
अपना+पन = अपनापन
तद्धित प्रत्यय 6 प्रकार के होते हैं।
(i)कर्त्तुवाचक तद्धित प्रत्यय
– वे प्रत्यय जो किसी संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्द
के साथ जुड़कर कर्त्तुवाचक शब्द का निर्माण करते हैं।-
आर = लुहार, सुनार
इया = रसिया
ई = तेली
एरा = घसेरा
(ii)भाववाचक तद्धित प्रत्यय –
वे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के साथ
जुड़कर
भाववाचक संज्ञा बनाते हैं।
आई = बुराई
आपा = बुढ़ापा
आस = खटास, मिठास
आहट = कड़वाहट
इमा = लालिमा
ई = गर्मी
ता = सुन्दरता, मूर्खता, मनुष्यता,
त्व = मनुष्यत्व, पशुत्व
पन = बचपन, लड़कपन, छुटपन
(iii)सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय
– इन प्रत्ययों के लगने से सम्बन्ध वाचक शब्दों की
रचना होती है।
एरा = चचेरा, ममेरा
इक = शारीरिक
आलु = दयालु, श्रद्धालु
इत = फलित
ईला = रसीला, रंगीला
ईय = भारतीय
ऐला = विषैला
तर = कठिनतर
मान = बुद्धिमान
वत् = पुत्रवत, मातृवत्
हरा = इकहरा
जा = भतीजा, भानजा
ओई = ननदोई
(iii)अप्रत्यवाचक तद्धित प्रत्यय
– संस्कृत के प्रभाव के कारण संज्ञा के साथ अप्रत्यवाचक
प्रत्यय लगाने से सन्तान का बोध होता है।
अ = वासुदेव, राघव, मानव
ई = दाशरथि, वाल्मीकि, सौमित्रि
एय = कौन्तेय, गांगेय, भागिनेय
य = दैत्य, आदित्य
ई = जानकी, मैथिली, द्रोपदी, गांधारी
(v) ऊनतावाचक तद्धित प्रत्यय
– संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के साथ
प्रयुक्त होकर
ये उनके लघुता सूचक शब्दों का निर्माण करते हैं।
इया = खटिया, लुटिया, डिबिया
ई = मण्डली, टोकरी, पहाड़ी, घण्टी
ओला = खटोला, संपोला
(अप) स्त्रीबोधक तद्धित प्रत्यय:
वे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के साथ
लगकर
उनके स्त्रीलिंग का बोध कराते है।
आ = सुता, छात्रा, अनुजा
आइन = ठकुराइन, मुंशियाइन
आनी = देवरानी, सेठानी, नौकरानी
इन = बाघिन, मालिन
नी = शेरनी, मोरनी
उर्दू के प्रत्यय
हिन्दी की उदारता के कारण उर्दू के कतिपय प्रत्यय हिन्दी में भी प्रयुक्त होने
लगे हैं। जैसे
गर = जादूगर, बाजीगर, कारीगर, सौदागर
ची = अफीमची, तबलची, बाबरची, तोपची
नाक = शर्मनाक, दर्दनाक
दार = दुकानदार, मालदार, हिस्सेदार, थानेदार
आबाद = अहमदाबाद, इलाहाबाद, हैदराबाद
इन्दा = परिन्दा, बाशिन्दा, शर्मिन्दा, चुनिन्दा
इश = फरमाइश, पैदाइश, रंजिश
इस्तान = कब्रिस्तान, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान
खोर = हरामखोर, घूसखोर, जमाखोर, रिश्वतखोर
गाह = ईदगाह, बंदरगाह, दरगाह, आरामगाह
गार = मददगार, यादगार, रोजगार, गुनाहगार
गीर = राहगीर, जहाँगीर
गी = दीवानगी, ताजगी, सादगी
गीरी = कुलीगीरी, मुंशीगीरी
नवीस = नक्शानवीस, अर्जीनवीस
नामा = अकबरनामा, सुलहनामा, इकरारनामा
बन्द = हथियारबन्द, नजरबन्द, मोहरबन्द
बाज = नशेबाज, चालबाज, दगाबाज
मन्द = अकलमन्द, जरूरतमंद, ऐहसानमंद
साज = जिल्दसाज, घड़ीसाज, जालसाज
विशेष: कई बार प्रत्यय लगने पर मूलशब्द के आदि मध्य या अन्त में प्रयुक्त स्वरों
में
परिवर्तन हो जाता है। जैसे
इक = समाज-सामाजिक, इतिहास-ऐतिहासिक,
नीति-नैतिक, पुराण-पौराणिक, भूगोल-
भौगोलिक, लोक-लौकिक
य = मधुर-माधुर्य, दिति-दैत्य, सुन्दर-सौन्दर्य,
शूर-शौर्य
इ = दशरथ-दाशरथि, सुमित्रा-सौमित्रि
एय = गंगा-गांगेय, कुन्ती-कौन्तेय
आइन = ठाकुर,-ठकुराइन, मुंशी-मुंशियाइन
इनी = हाथी-हथिनी
एरा = चाचा-चचेरा, लूटना-लुटेरा
आई = साफ-सफाई, मीठा-मिठाई, बोना-बुवाई
अक्कड़ = भूलना-भुलक्कड़, पीना-पियक्कड़
आरी = पूजना-पुजारी, भीख-भिखारी
ऊटा = काला-कलूटा
आव = खींचना-खिंचाव, घूमना-घुमाव
आस = मीठा-मिठास
आपा = बूढ़ा-बुढ़ापा
आर = लोहा-लुहार, सोना-सुनार
इया = चूहा-चुहिया, लोटा-लुटिया
वाड़ी = फूल-फुलवाड़ी
वास = रानी-रनिवास
पन = छोटा-छुटपन, बच्चा-बचपन,
लड़का-लड़कपन
हारा = मनी-मनिहारा
एल = नाक-नकेल
आवना = लोभ-लुभावना

हिन्दी में प्रत्यय विचार (लिंग निर्धारण के विशेष सन्दर्भ में)


हिन्दी में प्रत्यय (Suffix) उस शब्दांश को कहते हैं; जो शब्द के अन्त में जुड़कर शब्दों के अर्थ एवं रूप को बदलने की क्षमता रखता है। प्रत्यय का कोई स्वतंत्र अर्थ नहीं होता परंतु शब्द के साथ जुड़कर कुछ न कुछ अर्थ अवश्य देता है। इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से नहीं किया जा सकता वरन् ये शब्दों के साथ जुड़कर ही प्रयुक्त होते हैं। शब्दों के साथ प्रत्यय के जुड़ने पर मूल शब्दों में कुछ रूपस्वनिमिक परिवर्तन भी होते हैं।
अंग्रेजी में Affixes की तीन अवस्था होती है-
1. Preffix (पूर्व प्रत्यय)
2. Infix (मध्य प्रत्यय)
3. Suffix (अंत्य प्रत्यय)
परन्तु हिन्दी में पूर्व प्रत्यय एवं अंत्य प्रत्यय की ही व्यवस्था है, मध्य प्रत्यय की नहीं। पूर्व प्रत्यय को उपसर्ग कहा गया है। प्रत्यय शब्द केवल ‘अन्त्य’ प्रत्यय के लिए ही प्रयुक्त होता है। प्रस्तुत आलेख में ‘पर’ अथवा ‘अन्त्य’ प्रत्यय के लिए ही प्रत्यय का प्रयोग किया गया है। संस्कृत में दो प्रकार के प्रत्यय होते हैं-
1. सुबन्त
2. तिङन्त
सुबन्त अर्थात् सुप् प्रत्यय सभी नामपद अर्थात् संज्ञा अथवा विशेषण के साथ जुड़ते हैं। यथा- रामः, बालकौ, बालकस्य, सुन्दरः, मनोहरं आदि।
तिङन्त अर्थात् तिङ् प्रत्यय आख्यात अर्थात् क्रिया के साथ जुड़ते हैं। यथा- गच्छति, गमिष्यन्ति, अगच्छत्, गच्छेयूः आदि।
संस्कृत में सुबन्त एवं तिङन्त विभक्ति के द्योतक है। जबकि तद्धित एवं कृदंत को प्रत्यय कहा गया है। हिन्दी में प्रत्यय के दो प्रकार माने गए हैं- तद्धित एवं कृदंत। तद्धित प्रत्यय संज्ञा एवं विशेषण के साथ जुड़ते हैं जबकि कृदंत अर्थात् कृत् प्रत्यय क्रिया के साथ।
तद्धित प्रत्यय -
- ता स्वतंत्रता, ममता, मानवता।
- पन बचपन, पागलपन, अंधेरापन।
- इमा लालिमा, कालिमा।
- त्व अमरत्व, ममत्व, कृतित्व, व्यक्तित्व।

कृदंत प्रत्यय -
-अक - पाठक, लेखक, दर्शक, भक्षक।
- आई - पढ़ाई, लड़ाई, सुनाई, चढ़ाई, कटाई, बुनाई।
- आवट - लिखावट, सजावट, बुनावट, मिलावट। हिन्दी में किसी शब्द को एक वचन से बहुवचन बनाने पर जो परिवर्तन होता है वह प्रत्यय के स्तर पर ही होता है, ऐसे प्रत्यय को भाषावैज्ञानिक दृष्टि से बद्धरूपिम; (Bound Morphome) की संज्ञा दी गई है, जैसे-
एकवचन बहुवचन प्रत्यय
1. लड़का लड़के -ए
2. कुर्सी कुर्सियाँ -याँ
3. मेज मेजें -एँ
4. समाज समाज -शून्य

उपर्युक्त उदाहरणों में -ए , -या -एँ तथा शून्य बहुवचन प्रत्यय जुड़े हैं। शून्य प्रत्यय को शून्य विभक्ति कहा जाता है। बहुवचन प्रत्यय के भी दो रूप मिलते हैं। पहला रूप वह प्रत्यय जो शब्दों के बहुवचन रूप बनने पर सीधे-सीधे रूपों में दिखे। जैसा कि उपर्युक्त उदाहरणों में दिया गया है। दूसरा रूप वह जो तिर्यक रूप में दिखे, जैसे- लड़कों, कुर्सियों, मेजों, समाजों, मनुष्यों, जानवरों आदि में ‘-ओं’ के रूप में। दोनों बहुवचन प्रत्ययों में व्याकरणिक दृष्टि से वाक्यगत जो अंतर है वह यह कि सीधे रूप के साथ कोई परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं जुड़ता। हाँ, आकारान्त शब्दों के बहुवचन रूप बनने पर उसमें ‘-ए’ प्रत्यय जुड़ता है परंतु परसर्ग (विभक्ति चिह्न) के जुड़ने पर वह बहुवचन न होकर एकवचन रूप हो जाता है।

उदाहरण के लिए-
कपड़े फट गए।
कपड़े पर दाग है। (एकवचन रूप)
लड़के खेल रहे हैं।
लड़के ने खेला है। (एकवचन रूप)
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि बहुवचन प्रत्यय के लगने पर कोई परसर्ग नहीं लगेगा। आकारांत शब्दों में बहुवचन प्रत्यय ‘-ए’ लगने पर उसके साथ परसर्ग तो लग सकता है परंतु परसर्ग लगने पर बहुवचन न होकर एकवचन रूप हो जाता है। सभी आकारांत शब्दों में बहुवचन प्रत्यय (-ए) नहीं लगता। यह प्रत्यय केवल जातिवाचक, पुल्लिंग संज्ञाओं में ही लगता है। व्यक्तिवाचक, संबंधवाचक एवं जातिवाचक स्त्रीलिंग संज्ञाओं में नहीं लगता।

बहुवचन का तिर्यक रूप
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि बहुवचन प्रत्यय का तिर्यक रूप ‘-ओं’ है। किसी भी शब्द में ‘-ओं’ प्रत्यय लग सकता है। -ओं प्रत्यय से बनने वाले सभी शब्द बहुवचन होते हैं परंतु इनका वाक्यगत प्रयोग बिना परसर्ग के नहीं हो सकता है। दूसरे शब्दों में तिर्यक बहुवचन प्रत्यय(-ओं) का प्रयोग परसर्ग सहित ही होता है,
जैसे-
लड़कों को बुलाओ।
लड़कों बुलाओ।
कुर्सियों पर धूल जमा है।
*कुर्सियों धूल जमा है।
अलग-अलग मेजों को लगाओ।
*अलग-अलग मेजों लगाओ। (*यह चिह्न अस्वाभाविक प्रयोग का वाचक है)
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि बहुवचन शब्दों का तिर्यक रूप प्रत्यय -ओं का प्रयोग परसर्ग सहित ही प्रयुक्त होगा, परसर्ग के बिना नहीं।
लिंग (Gender) : स्वरूप एवं निर्धारण- किसी भी भाषा में लिंग वह है, जिसके द्वारा मूर्तवस्तु अथवा अमूर्त भावनात्मक शब्दों के बारे में यह जाना जाता है कि वह पुरुष का बोध कराता है स्त्री का अथवा दोनों का। लिंग का अध्ययन व्याकरणिक कोटियों (Grammetical Categories) के अंतर्गत किया जाता है।
अधिकांश भाषाओं में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसक लिंग। परंतु हिन्दी में दो ही लिंग हैं- पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। हिन्दी भाषा में लिंग निर्धारण के संदर्भ में अभी तक कोई समुचित सिद्धान्त अथवा व्यवस्था नहीं दी गई है, जिसके आधार पर लिंग का निर्धारण आसानी से किया जा सके। हिन्दीतर भाषियों की हिन्दी सीखते समय सबसे बड़ी समस्या यही है कि किन शब्दों को पुल्लिंग माने, किन शब्दों को स्त्रीलिंग और मानने का आधार क्या है?
इस संदर्भ में प्रसिद्ध वैयाकरणों ने भी अपनी विवशता प्रकट की है। हिन्दी के मूर्धन्य वैयाकरण कामता प्रसाद गुरू के शब्दों में निम्नलिखित कथन उद्धृत है-
‘‘हिन्दी में अप्राणीवाचक शब्दों का लिंग जानना विशेष कठिन है; क्योंकि यह बात अधिकांश व्यवहार के अधीन है। अर्थ और रूप दोनों ही साधनों से इन शब्दों का लिंग जानने में कठिनाई होती है’’। -कामता प्रसाद गुरू- हिन्दी व्याकरण- पृ.151. 1920
हिन्दी में लिंग का निर्धारण कुछ हद तक प्रत्ययों के आधार पर किया जा सकता है। जब किसी शब्द में कोई प्रत्यय जुड़ता है तो मूल शब्द संज्ञा, विशेषण अथवा कृदंत होते हैं। यदि संज्ञा है तो या तो स्त्रीलिंग होगा अथवा पुल्लिंग। विशेषण शब्दों का अपना कोई लिंग नहीं होता। जिस संज्ञा शब्द की विशेषता बताते हैं उन्हीं संज्ञा के साथ विशेषण की अन्विति होती है।
वह प्रत्यय जो किसी शब्द के साथ जुड़कर उस शब्द को पुल्लिंग बनाता है, उसे पुरुषवाची तथा वह प्रत्यय जो किसी शब्द के साथ जुड़कर स्त्रीलिंग बनाता है, उसे स्त्रीवाची प्रत्यय कह सकते हैं। इस प्रकार प्रयोग अथवा प्रकार्य की दृष्टि से दो प्रकार के प्रत्यय हो सकते हैं- 1. स्त्रीवाची प्रत्यय और 2. पुरुषवाची प्रत्यय।


स्त्रीवाची प्रत्यय
जिस शब्द के साथ स्त्रीवाची प्रत्यय जुड़ते हैं वे सभी शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। नीचे कुछ स्त्रीवाची प्रत्ययों एवं उनसे बनने वाले शब्दों के उदाहरण दिए जा रहें हैं-
‘-ता’ स्त्रीवाची प्रत्यय - इस प्रत्यय के शब्द में जुड़ने से जो शब्द बनते हैं, वे सभी भाववाचक स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द बनते हैं-
मूलशब्द प्रत्यय योग भाववाचक संज्ञा
मानव -ता मानवता
स्वतंत्र -ता स्वतंत्रता
पतित -ता पतिता
विवाह -ता विवाहिता
महत् -ता महत्ता
दीर्घ -ता दीर्घता
लघु -ता लघुता
दुष्ट -ता दुष्टता
प्रभु -ता प्रभुता
आवश्यक -ता आवश्यकता
नवीन -ता नवीनता आदि।
नोटः- -ता प्रत्यय जिन शब्दों में लगता है, वे शब्द बहुधा विशेषण पद होते हैं। -ता प्रत्यय लगने के पश्चात् वे सभी (विशेषण अथवा संज्ञा) शब्द भाववाचक संज्ञा हो जाते हैं। प्रत्ययों का किसी शब्द में जुड़ना भी किसी नियम के अंतर्गत होता है, उसकी एक व्यवस्था होती है। एक शब्द में दो-दो विशेषण प्रत्यय अथवा एक ही शब्द में दो-दो भाववाचक प्रत्यय नहीं लग सकते। हाँ, विशेषण प्रत्यय के साथ भाववाचक प्रत्यय अथवा भाववाचक प्रत्यय के साथ विशेषण प्रत्यय जुड़ सकते हैं, जैसे- आत्म+ ईय(विशेषण) + ता(भाववाचक) - आत्मीयता। ’ मम+ ता (भाववाचक) +त्व (भाववाचक) - नहीं जुड़ सकते। संज्ञा शब्द में विशेषण प्रत्यय के साथ संज्ञा प्रत्यय जुड़ सकता है। जहाँ विशेषण शब्द में विशेषण प्रत्यय नहीं जुड़ता वहीं संज्ञा शब्द में संज्ञा प्रत्यय जुड़ सकता है।,
उपर्युक्त सभी -ता प्रत्यय से युक्त भाववाचक संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग हैं। -ता प्रत्यय से कुछ समूह वाचक अथवा अन्य शब्द भी निर्मित होते हैं परंतु वे शब्द भी स्त्रीलिंग ही होते हैं- जन+ता = जनता, कवि+ता= कविता आदि। इनकी संख्या सीमित है।
(-इमा) स्त्रीवाची प्रत्यय-
मूल शब्द प्रत्यय योग भाववाचक शब्द
लाल -इमा लालिमा
काला -इमा कालिमा
रक्त -इमा रक्तिमा
गुरू -इमा गरिमा
लघु -इमा लघिमा आदि।
-इमा प्रत्यय से युक्त सभी शब्द भाववाचक स्त्रीलिंग होते हैं।
-आवट स्त्रीवाची प्रत्यय-
मूल शब्द प्रत्यय योग भाववाचक शब्द
लिख -आवट लिखावट
रूक -आवट रुकावट
मेल -आवट मिलावट आदि।
उपर्युक्त सभी शब्द स्त्रीलिंग हैं। -आवट प्रत्यय कृदंत प्रत्यय है। उससे बनने वाले सभी शब्द भाववाचक संज्ञा होते हैं।
-आहट स्त्रीवाची प्रत्यय-
कड़ूआ -आहट कड़ुवाहट
चिकना -आहट चिकनाहट
गरमा -आहट गरमाहट
मुस्करा -आहट मुस्कराहट आदि।
उपर्युक्त सभी भाववाचक संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग हैं। -आहट प्रत्यय कृदंत प्रत्यय है।
-ती स्त्रीवाची प्रत्यय-
यह प्रत्यय तद्धित और कृदंत दोनों रूपों में प्रयुक्त हो सकता है। इससे बनने वाले सभी शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। (सजीव शब्दों को छोड़कर)
पा -ती पावती
चढ़ -ती चढ़ती
गिन -ती गिनती
भर -ती भरती
मस्(त) -ती मस्ती आदि।
-इ/-ति प्रत्यय-
-इ, अथवा -ति प्रत्यय से युक्त शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। प्राणीवाचक शब्दों को छोड़कर। (जैसे- कवि, रवि आदि)।
कृ -ति कृति
प्री -ति प्रीति
शक् -ति शक्ति
स्था -ति स्थिति आदि।
इसी प्रकार भक्ति, कांति, क्रांति, नियुक्ति, जाति, ज्योति, अग्नि, रात्रि, सृष्टि, दृष्टि, हानि, ग्लानि, राशि, शांति, गति आदि सभी इकारांत शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
नोटः- जब दो शब्द जुड़ते हैं तो द्वितीय घटक के आधार पर ही पूरे पद का लिंग निर्धारण होता है-
पुनः + युक्ति = पुनरुक्ति(स्त्री।)
सहन + शक्ति = सहनशक्ति(स्त्री।)
मनस् + स्थिति = मनःस्थिति(स्त्री।)
यदि द्वितीय घटक स्त्रीलिंग है तो संपूर्ण घटक स्त्रीलिंग होगा, इसके विपरीत पुल्लिंग।,
-आई स्त्रीवाची प्रत्यय
सच -आई सचाई
साफ -आई सफाई
ढीठ -आई ढीठाई आदि।
नोटः- -आई प्रत्यय कृदंत और तद्धित दोनों रूपों में प्रयुक्त होता है। -आई प्रत्यय से युक्त सभी भाववाचक शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
-ई स्त्रीवाची प्रत्यय
-ईकारांत सभी भाववाचक शब्द स्त्रीलिंग होते हैं-
सावधान-ई =सावधानी खेत-ई =खेती महाजन-ई= महाजनी
डाक्टर-ई = डाक्टरी गृहस्थ-ई =गृहस्थी दलाल-ई =दलाली आदि।
-औती स्त्रीवाची प्रत्यय
बूढ़ा-औती =बुढ़ौती मन-औती = मनौती
फेर-औती = फिरौती चुन-औती = चुनौती आदि।
उपर्युक्त सभी भाववाचक शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-आनी स्त्रीवाची प्रत्यय-
यह प्रत्यय स्त्रीवाचक प्रत्यय है। किसी भी सजीव शब्द के साथ जुड़कर स्त्रीलिंग बनाता है, जैसे-
पंडित-आनी = पंडितानी, मास्टर-आनी = मस्टरानी आदि।
-इन स्त्रीवाची प्रत्यय- यह प्रत्यय भी -आनी प्रत्यय की भांति ही सजीव शब्दों में लगकर स्त्रीलिंग बनाता है, जैसे-
सुनार-इन=सुनारिन, नात/नाती-इन=नातिन, लुहार-इन=लुहारिन आदि।
पुरुषवाची प्रत्यय
पुरुषवाची प्रत्यय उन शब्दांशों को कहते हैं, जो किसी शब्द के साथ जुड़कर पुल्लिंग बनाते हैं। स्त्रीवाची प्रत्ययों की भांति पुरुषवाची प्रत्ययों की भी संख्या अधिक है।
नीचे कुछ पुरुषवाची प्रत्यय के उदहारण दिए गए हैं।
-त्व पुरुषवाची प्रत्यय - यह भाववाचक तद्धित प्रत्यय है, जिन शब्दों के साथ यह प्रत्यय जुड़ता है, वे शब्द भाववाचक पुल्लिंग हो जाते हैं।
मम-त्व = ममत्व बंधु-त्व = बंधुत्व
एक-त्व = एकत्व घन-त्व = घनत्व आदि।
नोटः- उपर्युक्त सभी भाववाचक शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-आव प्रत्यय
यह एक कृदंत प्रत्यय है। इससे बनने वाले सभी शब्द पुल्लिंग होते हैं।
लग-आव = लगाव बच-आव = बचाव
गल-आव = गलाव पड़-आव = पड़ाव
झुक-आव = झुकाव छिड़क-आव = छिड़काव आदि।

-आवा पुरुषवाची प्रत्यय
यह प्रत्यय भी -आव प्रत्यय की भांति कृदंत प्रत्यय है। इससे बनने वाले सभी शब्द पुल्लिंग होते हैं।
बुला-आवा = बुलावा
पहिर-आवा = पहिरावा
-पन/पा पुरुषवाची प्रत्यय
ये प्रत्यय भाववाचक तद्धित प्रत्यय हैं। ये किसी भी शब्द के साथ जुड़कर भाववाचक पुल्लिंग शब्द बनाते हैं।
काला -पन = कालापन
बाल -पन = बालपन
लचीला -पन = लचीलापन
बूढ़ा -पा = बुढ़ापा
मोटा -पा = मोटापा
अपना -पन = अपनापन आदि।
-ना पुरुषवाची प्रत्यय
यह एक कृदंत प्रत्यय है। हिन्दी में ‘-ना’ से युक्त सभी क्रियार्थक संज्ञाएँ (Gerund) पुल्लिंग होती हैं। इन्हीं क्रियार्थक संज्ञाओं में से ‘-ना’ प्रत्यय हटा लेने पर जो भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं, वे सभी स्त्रीलिंग होती हैं। उदहारण के लिए- जाँचना, लूटना, महकना, डाँटना आदि सभी क्रियार्थक संज्ञाएँ पुल्लिंग हैं; जबकि जाँच, लूट, महक, डाँट सभी भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग हैं।
क्रियार्थक संज्ञा से दो प्रकार से प्रत्ययों का लोप संभव है। पहला वह जो क्रियार्थक संज्ञा से सीधे -ना प्रत्यय का लोप कर भाववाचक संज्ञा बनती हैं। दूसरी वह जो क्रियार्थक संज्ञा में से -आ प्रत्यय का लोप कर भाववाचक संज्ञा बनती हैं। क्रियार्थक संज्ञा में से -ना एवं -आ प्रत्यय के लोप से सभी भाववाचक संज्ञा बनती हैं, साथ ही उक्त सभी संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
ऊपर -ना लोप के कुछ उदहारण दिए गए हैं। -आ लोप के उदहारण इस प्रकार हैं-
धड़कना-धड़कन,जलना-जलन, चलना-चलन, लगना-लगन आदि।
इनमें धड़कन, जलन, चलन, लगन, आदि भाववाचक स्त्रीलिंग संज्ञा हैं।
नीचे कुछ क्रियार्थक संज्ञा एवं -ना प्रत्यय लोप के उदाहरण दिए जा रहें हैं। जहाँ क्रियार्थक संज्ञा पुल्लिंग हैं, वहीं -ना लोप भाववाचक संज्ञा स्त्रीलिंग हैं-
-ना युक्त क्रियार्थक संज्ञा लिंग -ना प्रत्यय लोप लिंग
जाँचना पुल्लिंग जाँच स्त्रीलिंग
लूटना - लूट -
पहुँचना - पहुँच -
चमकना - चमक -
नीचे कुछ -ना प्रत्यय युक्त क्रियार्थक संज्ञा एवं -आ प्रत्यय लोप के उदहारण दिए जा रहें हैं। जहाँ -ना प्रत्यय युक्त क्रियार्थक संज्ञा पुल्लिंग हैं, वहीं -आ प्रत्यय लोप भाववाचक संज्ञा स्त्रीलिंग।
-ना युक्त क्रि.सं. लिंग -आ लोप प्रत्यय लिंग
धड़कना पुल्लिंग धड़कन स्त्रीलिंग
जलना - जलन -
चलना - चलन - आदि।
कुछ उर्दू के स्त्रीवाची और पुरुषवाची प्रत्यय
हिंदी में कुछ उर्दू के प्रत्ययों का प्रयोग हो रहा है, जो स्त्रीवाची और पुरुषवाची प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त हो रहे हैं। इनके आधार पर भी लिंग निर्धारण संभव है; जैसे-
उर्दू के पुरुषवाची प्रत्यय-
-दान
चायदान, पायदान, इत्रदान, पानदान, कलमदान, कदरदान, रोशनदान, ख़ानदान आदि सभी शब्द पुल्लिंग होते हैं।
-आना
नजराना, घराना, जुर्माना, याराना, मेहनताना, दस्ताना, आदि सभी पुल्लिंग शब्द हैं।
-आत
जवाहरात, कागज़ात, मकानात, ख्यालात आदि पुल्लिंग शब्द हैं।
कुछ उर्दू के स्त्रीवाची प्रत्यय-
-गी - दिवानगी, विरानगी, नाराजगी, ताजगी, पेचीदगी, शर्मिंदगी, रवानगी आदि सभी शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-इयत-असलीयत, खासियत, मनहुसियत, मासूमियत, महरूमियत, इंसानियत, अंग्रेजियत, कब्ज़ियत आदि सभी शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-इश - बंदिश, रंजिश, ख्वाहिश, आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-अत -नजा़कत, खि़लाफ़त, हिफ़ाज़त आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-गिरी -नेतागिरी, राजगिरी, गुंडागिरी, बाबूगिरी आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं।
उपर्युक्त प्रत्ययों में कुछ महत्त्वपूर्ण स्त्रीवाची एवं पुरुषवाची प्रत्ययों के उदहारण दिए गए हैं। इनमें कुछ कृदंत प्रत्यय हैं, कुछ तद्धित प्रत्यय तथा कुछ कृदंत एवं तद्धित दोनों रूपों में प्रयुक्त प्रत्यय। हिंदी के लिंग निर्धारण की एक दूसरी व्यवस्था दी जा रही है, जिसके अंतर्गत अधिकांष शब्द आ जाते हैं। हिन्दी में बहुवचन प्रत्यय एँ, याँ, ए एवं शून्य होता है। इसमें एँ तथा याँ प्रत्यय स्त्रीवाची प्रत्यय हैं। ये जिस किसी शब्द के साथ जुड़ते हैं, वे सभी शब्द स्त्रीलिंग होते हैं तथा -ए एवं -शून्य प्रत्यय जिस शब्द के साथ जुड़ते हैं, वे सभी पुल्लिंग होते हैं। ‘-ए’ बहुवचन प्रत्यय केवल आकारांत पुल्लिंग, जातिवाचक शब्द के साथ ही जुड़ते हैं। यहाँ शून्य से तात्पर्य है प्रत्यय रहित। जिस शब्द के साथ कोई भी बहुवचन प्रत्यय नहीं जुड़ता वहाँ शून्य प्रत्यय होता है। शून्य प्रत्यय वाले शब्द स्त्रीलिंग एवं कुछ शब्द पुल्लिंग भी हो सकते हैं। परंतु ‘-ए’ बहुवचन प्रत्यय वाले सभी शब्द पुल्लिंग होते हैं। नीचे इनके उदहारण दिए जा रहें हैं-
एकव. शब्द बहुव. शब्द प्रत्यय लिंग
मेज़ मेज़ें -एँ स्त्रीलिंग
कुर्सी कुर्सियाँ -याँ -
लकड़ी लकड़ियाँ -याँ -
भावना भावनाएँ -एँ -
पुस्तक पुस्तकें -एँ -
जहाज जहाजें -एँ -
फोड़ा फोड़े -ए पुल्लिंग
लड़का लड़के -ए -
प्रेम प्रेम शून्य -
प्यार प्यार शून्य -
घोड़ा घोड़े -ए -
कमरा कमरे -ए - आदि।
स प्रकार हिंदी में प्रत्यय पर विचार करते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रत्ययों के आधार पर हिंदी में लिंग निर्धारण संबंधी समस्याओं को दूर किया जा सकता है, जो प्रस्तुत लेख का उद्देश्य है।

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