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बुधवार, 22 अप्रैल 2020

'हलीम' उवाच


प्रकृति की ओर लौटो
(विश्व पृथ्वी दिवस पर प्रासंगिक)

कैसी विचित्र विडम्बना है कि प्रकृति के सबसे ज़िम्मेदार प्राणी मानव ने सदैव जिस प्रकृति के प्रति अपने दायित्वों की अनदेखी की, वही मानव जाति आज त्राहिमाम करती हुई मानवता की रक्षा के लिए प्रार्थनारत है, मानवता की दुहाई दे रही है। इस कोरोना संकट ने देर से ही सही पर मनुष्य को उसकी वास्तविकता बता दी है।

पिछले 2 महीनों में इस महामारी के प्रसार पर निगाह डालें तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि कोरोना का कहर वहाँ सबसे अधिक हुआ जहाँ जीवन अधिक विलासितायुक्त था। चाहे वह अमेरिका, चीन और यूरोपीय देश हों या फिर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे आधुनिक जीवनशैली वाले भारतीय शहर, कोरोना ने भौतिकता के आधार पर ही लोगों को निशाना बनाया। इसे इस तरह से समझिये कि कोरोना से बचने के लिए मज़बूत प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) का होना बहुत ज़रूरी होता है और अच्छी इम्यूनिटी के लिए प्राकृतिक तथा जैविक वस्तुओं का सेवन आवश्यक है। प्रकृति हमें हर मौसम के फल, सब्जियाँ देती है जो हमारे शरीर को उस मौसम की बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी बनाती है, वह हमारे शरीर में उसके विरुद्ध पहले ही एंटीबॉडीज़ का निर्माण कर देती है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली की ओर हम जितना ही बढ़ते हैं, प्रकृति से उतने ही दूर हो जाते हैं। नींबू, संतरे, सेब, आम के प्राकृतिक सेवन के स्थान पर Processed और Preservative युक्त पैक्ड जूस कहाँ से इम्यूनिटी दे सकते हैं। पाचन ठीक कर शरीर को ऊर्जा देने का जो काम गेहूँ, मक्का, चना इत्यादि अनाज कर सकते हैं वह काम भला पिज़्ज़ा और ब्रेड के सड़े आटे से कैसे हो सकता है? जिन गुणकारी मसालों में इम्यूनिटी का वरदान था वह बाज़ार की स्वार्थी मिलावटखोरी की भेंट चढ़ गया।

इतना ही नहीं हमने प्राणदायिनी वायु को भी आधुनिक बनाने की कोशिश की। एसी के बनावटी अनुकूलन में हमने प्राकृतिक और जीवन तत्वों से भरपूर खुले वातावरण को बिलकुल ही त्याग दिया। वायु न सिर्फ प्राणदायिनी ऑक्सीजन देती है बल्कि नाइट्रोजन, ऑर्गन, निऑन जैसे तत्व शरीर को दृढ़ता और प्रतिरोधकता देने वाले तत्व भी प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त वायु में कई जीवाणु भी मौजूद होते हैं जो हमारे शरीर में जाकर विषाणुओं का नाश करने में स्वतः ही सक्षम होते हैं।

बनावटी जीवनशैली अपनाने के चक्कर में हम इन सभी अनमोल प्राकृतिक उपहारों को छोड़ते चले गए और अपने ही शरीर को हानि पहुँचाते रहे। यही कारण है कि आज जितनी अधिक आधुनिक और कथित सभ्य मानव बिरादरी थी उसे उतना ही अधिक नुकसान झेलना पड़ा है। वरना क्या कारण है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में या मेहनतकश वर्ग में कोरोना का प्रसार नहीं हो सका है, जबकि पिछले दिनों इन सामान्य वर्ग के लोगों की भारी भीड़ जुटी थी और जिसने सरकार की चिंता बढ़ा दी थी। कारण साफ़ है कि यह वर्ग प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर रहता है और इसी कारण इनकी प्रतिरोधक क्षमता भी मज़बूत रहती है।

एक और उदाहरण हिमालयी क्षेत्रों का लें जहाँ इस महामारी ने अब तक अपने पैर नहीं फैलाये हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले आज भी प्राकृतिक साहचर्य पर भरोसा करते हैं। यहाँ प्रकृति के तत्वों का उसी रूप में प्रयोग करने की स्वस्थ परंपरा आज भी कायम है। इसके अतिरिक्त वे स्वच्छ प्राकृतिक वायु और प्रदूषणरहित तथा खनिजयुक्त प्राकृतिक जल का सेवन करते हैं। आज भी इन क्षेत्रों में इन प्राकृतिक तत्वों तथा स्रोतों की पूजा की जाती है जो हमारी सनातनी सभ्यता का अनिवार्य अंग है परन्तु जिसे हमने भुला दिया है।

पिछले एक महीने में प्रकृति की सेहत में जो अभूतपूर्व सुधार हुआ है वह भी मानव समाज की आँखें खोलने के लिए पर्याप्त है। हमारी वायु, जल स्रोत, वनस्पति सब जैसे आनंद का अनुभव कर रहे हैं। पृथ्वी मानो संकेत कर रही हो कि हे मानव मुझे अपने वास्तविक स्वरुप में लौटने दो, मुझे स्वच्छ रखो और उसका उपभोग करो ताकि मैं तुम्हारा जीवन आनंद से भर सकूँ। मेरी गोद में तुम्हारे लिए अमृत का खज़ाना है इसका लाभ उठाओ, इसे नष्ट मत करो।

अब भी समय है यदि हम अपनी अकर्मण्यता का त्याग कर स्वाभाविक जीवनशैली की ओर नहीं लौटे तो इससे भी भयंकर परिणाम हो सकते हैं। प्रति 10 वर्षो में कोई न कोई घातक विषाणु मनुष्य के जीवन में विष घोल रहा है, क्या पता प्रकृति का अगला कोई दूत हमें ये अवसर भी न दे। वैसे जिस बुरे दौर से इस धरती के मनुष्य गुज़र रहे हैं उससे एक उम्मीद तो जगती है कि शायद अब मानव बनावटी जीवन को छोड़कर स्वस्थ और प्राकृतिक जीवन अपनाना बेहतर समझे। और यदि ऐसा हो सके तो यह मानव जीवन का भविष्य अगली कुछ सदियों के लिए सुरक्षित कर देगा।

-निषेध कुमार कटियार ‘हलीम’

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

'हलीम' उवाच

तबलीगी मरकज


दरअसल ये जिहादी संगठनों का ही B group है जिसे धर्म प्रचार का नकाब पहना दिया गया है।

जाँच एजेंसियों का शक अब सही साबित होता जा रहा है। हरेक तबलीगी नेता का बेस कनेक्शन कोई न कोई आतंकी संगठन ही निकल रहा है। ये भारत या दूसरे देशों में प्रवेश के लिए तबलीगी पहचान का इस्तेमाल करते हैं और दुनिया की नज़रों में अपनी यात्रा का उद्देश्य मोहम्मद के सिद्दांतों का प्रचार करना ज़ाहिर करते हैं। इनके द्वारा देश भर में मरकत (सभाएं) आयोजित की जाती हैं और उनकी आड़ में मुस्लिम समाज के युवाओं में जिहादी बीज बोकर उन्हें  'स्लीपर सेल' बनाया जाता है।

हाल ही में CAA जैसे प्रयासों से बौखलाकर बड़ी संख्या में इनके नेता विदेशों से भारत में आये क्योंकि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरू होते ही जिस तेज़ी से एक के बाद एक 370, राम मंदिर, CAA जैसे निर्णय लिए गए और इनके भारतीय एजेंटों को निस्तेज कर दिया गया उससे इन्हें अपनी ज़मीन खिसकती महसूस हुई और इसके लिए उन्होंने CAA के विरोध को अवसर बनाते हुए देश के मुस्लमान वर्ग को एक आंदोलन के लिए खड़ा करने की योजना तैयार की।

उनकी इस योजना का व्यापक असर देश भर में और दिल्ली में हुए विरोध, प्रदर्शनों, दंगों में दिखाई दिया।

बीच में कोरोना के आ जाने से लॉक डाउन के कारण इन्हें अपनी कार्रवाही कुछ समय के लिए स्थगित करनी पड़ी और ये लॉक डाउन ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगे, जबकि इनके पास वापस जाने का पर्याप्त समय था। जब बार बार प्रशासन का निजामुद्दीन खाली करने का दबाव बढ़ा तो इन्होंने जगह खाली की लेकिन यहाँ भी ये बाज़ नहीं आये।

इनके खुराफाती दिमाग की तारीफ देखिये इन्होंने उस संकट को भी एक अवसर बना लिया और अपने अनुयायियों को इसे ही जिहाद के लिए एक बेहतर रास्ता बनाने को कहा। इन्होंने संक्रमित मौलाना से कई लोगों के संक्रमित होने का इंतज़ार किया और उन्हें सिखाया कि कैसे 'थूककर' या 'करीब जाकर' चिल्लाते हुए वायरस को फैला कर जिहाद शुरू किया जा सकता है।

हाल ही में कई वीडियो आये हैं जिनमें लोगों को किसी मस्जिद में एक साथ 'छींककर' या 'बर्तन जूठे करते हुए' (इन्हीं बर्तनों में और लोगों को खिलाने के लिए) देखा गया है। इनके पास ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है कि सिर्फ हिंदुओं को नुकसान पहुँचाना है, बल्कि ये तो किसी भी सूरत में तबाही मचाना चाहते हैं ताकि देश बर्बाद हो और उसका सीधा इल्जाम सरकार पर आये और ये वापस अपनी ताकत बढ़ा सकें।

मकसद बेहद साफ़ और दूरदर्शी है, हमें अब भी संभल जाना चाहिए और चौकन्ना रहना चाहिए। देखिये कहीं आप के आसपास तो कोई ऐसा संदिग्ध नहीं?? अगर है तो तुरंत प्रशासन को सूचना दीजिये।
धन्यवाद, जय हिंद।

आपका शुभचिंतक-
निषेध कुमार कटियार 'हलीम'

दरअसल ये जिहादी संगठनों का ही B group है जिसे धर्म प्रचार का नकाब पहना दिया गया है।

जाँच एजेंसियों का शक अब सही साबित होता जा रहा है। हरेक तबलीगी नेता का बेस कनेक्शन कोई न कोई आतंकी संगठन ही निकल रहा है। ये भारत या दूसरे देशों में प्रवेश के लिए तबलीगी पहचान का इस्तेमाल करते हैं और दुनिया की नज़रों में अपनी यात्रा का उद्देश्य मोहम्मद के सिद्दांतों का प्रचार करना ज़ाहिर करते हैं। इनके द्वारा देश भर में मरकत (सभाएं) आयोजित की जाती हैं और उनकी आड़ में मुस्लिम समाज के युवाओं में जिहादी बीज बोकर उन्हें  'स्लीपर सेल' बनाया जाता है।

हाल ही में CAA जैसे प्रयासों से बौखलाकर बड़ी संख्या में इनके नेता विदेशों से भारत में आये क्योंकि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरू होते ही जिस तेज़ी से एक के बाद एक 370, राम मंदिर, CAA जैसे निर्णय लिए गए और इनके भारतीय एजेंटों को निस्तेज कर दिया गया उससे इन्हें अपनी ज़मीन खिसकती महसूस हुई और इसके लिए उन्होंने CAA के विरोध को अवसर बनाते हुए देश के मुस्लमान वर्ग को एक आंदोलन के लिए खड़ा करने की योजना तैयार की।

उनकी इस योजना का व्यापक असर देश भर में और दिल्ली में हुए विरोध, प्रदर्शनों, दंगों में दिखाई दिया।

बीच में कोरोना के आ जाने से लॉक डाउन के कारण इन्हें अपनी कार्रवाही कुछ समय के लिए स्थगित करनी पड़ी और ये लॉक डाउन ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगे, जबकि इनके पास वापस जाने का पर्याप्त समय था। जब बार बार प्रशासन का निजामुद्दीन खाली करने का दबाव बढ़ा तो इन्होंने जगह खाली की लेकिन यहाँ भी ये बाज़ नहीं आये।

इनके खुराफाती दिमाग की तारीफ देखिये इन्होंने उस संकट को भी एक अवसर बना लिया और अपने अनुयायियों को इसे ही जिहाद के लिए एक बेहतर रास्ता बनाने को कहा। इन्होंने संक्रमित मौलाना से कई लोगों के संक्रमित होने का इंतज़ार किया और उन्हें सिखाया कि कैसे 'थूककर' या 'करीब जाकर' चिल्लाते हुए वायरस को फैला कर जिहाद शुरू किया जा सकता है।

हाल ही में कई वीडियो आये हैं जिनमें लोगों को किसी मस्जिद में एक साथ 'छींककर' या 'बर्तन जूठे करते हुए' (इन्हीं बर्तनों में और लोगों को खिलाने के लिए) देखा गया है। इनके पास ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है कि सिर्फ हिंदुओं को नुकसान पहुँचाना है, बल्कि ये तो किसी भी सूरत में तबाही मचाना चाहते हैं ताकि देश बर्बाद हो और उसका सीधा इल्जाम सरकार पर आये और ये वापस अपनी ताकत बढ़ा सकें।

मकसद बेहद साफ़ और दूरदर्शी है, हमें अब भी संभल जाना चाहिए और चौकन्ना रहना चाहिए। देखिये कहीं आप के आसपास तो कोई ऐसा संदिग्ध नहीं?? अगर है तो तुरंत प्रशासन को सूचना दीजिये।
धन्यवाद, जय हिंद।

आपका शुभचिंतक-
निषेध कुमार कटियार 'हलीम'

शनिवार, 28 मार्च 2020

'हलीम' उवाच

हिंदी भाषा का विकास


'हिन्दी' वास्तव में फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- हिन्दी का या हिंद से संबंधित। हिन्दी शब्द की निष्पत्ति सिन्धु (सिंध- पश्चिमी लोगों के लिए सिन्धु नदी के पार का देश) से हुई है। ईरानी भाषा में 'स' का उच्चारण 'ह' किया जाता था। इस प्रकार हिन्दी शब्द वास्तव में सिन्धु शब्द का प्रतिरूप है। कालांतर में हिंद शब्द संपूर्ण भारत का पर्याय बनकर उभरा । इसी 'हिन्द' से हिन्दी शब्द बना। 

आज हम जिस भाषा को हिन्दी के रूप में जानते है, वह आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है। आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत है, जो साहित्य की परिनिष्ठित भाषा थी। वैदिक भाषा में वेद, संहिता एवं उपनिषदों-वेदांत का सृजन हुआ है। वैदिक भाषा के साथ-साथ ही बोलचाल की भाषा संस्कृत थी, जिसे लौकिक संस्कृत भी कहा जाता है। संस्कृत का विकास उत्तरी भारत में बोली जाने वाली वैदिककालीन भाषाओं से माना जाता है। अनुमानत: ८ वीं.शताब्दी ई.पू. में इसका प्रयोग साहित्य में होने लगा था। संस्कृत भाषा में ही रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रन्थ रचे गए। वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, अश्वघोष, माघ, भवभूति, विशाख, मम्मट, दंडी तथा श्रीहर्ष आदि संस्कृत की महान विभूतियाँ है। इसका साहित्य विश्व के समृद्ध साहित्य में से एक है।

संस्कृतकालीन आधारभूत बोलचाल की भाषा परिवर्तित होते-होते 500 ई.पू. के बाद तक काफ़ी बदल गई, जिसे 'पाली' कहा गया। महात्मा बुद्ध के समय में पाली लोक भाषा थी और उन्होंने पाली के द्वारा ही अपने उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया। संभवत: यह भाषा ईसा की प्रथम ईसवी तक रही। पहली ईसवी तक आते-आते पाली भाषा और परिवर्तित हुई, तब इसे 'प्राकृत' की संज्ञा दी गई। इसका काल पहली ई. से 500 ई. तक है।
पाली की विभाषाओं के रूप में प्राकृत भाषाएँ- पश्चिमी, पूर्वी, पश्चिमोत्तरी तथा मध्य देशी, अब साहित्यिक भाषाओं के रूप में स्वीकृत हो चुकी थी, जिन्हें मागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, पैशाची, ब्राचड तथा अर्धमागधी भी कहा जा सकता है।

आगे चलकर प्राकृत भाषाओं के क्षेत्रीय रूपों से अपभ्रंश भाषाएँ प्रतिष्ठित हुईं। इनका समय 500 ई. से 1000 ई. तक माना जाता है। अपभ्रंश भाषा साहित्य के मुख्यत: दो रूप मिलते हैं- पश्चिमी और पूर्वी। अनुमानत: 1000 ई. के आसपास अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषाओं का जन्म हुआ। अपभ्रंश से ही हिन्दी भाषा का जन्म हुआ। आधुनिक आर्य भाषाओं में, जिनमें हिन्दी भी है, का जन्म 1000 ई.के आसपास ही हुआ था, किंतु उसमें साहित्य रचना का कार्य 1150 या इसके बाद आरंभ हुआ।

अनुमानत: तेरहवीं शताब्दी में हिन्दी भाषा में साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ हुआ, यही कारण है कि हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हिन्दी को ग्राम्य अपभ्रंशों का रूप मानते हैं। आधुनिक आर्यभाषाओं का जन्म अपभ्रंशों के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से इस प्रकार माना जा सकता है -

            अपभ्रंश                                आधुनिक आर्य भाषा तथा उपभाषा

              पैशाची                                         लहंदा, पंजाबी
              ब्राचड़                                           सिन्धी
              महाराष्ट्री                                     मराठी।
              अर्धमागधी                                   पूर्वी हिन्दी।
              मागधी                                         बिहारी, बंगला, उड़िया, असमिया।
              शौरसेनी                                       पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी, पहाड़ी, गुजराती।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि हिन्दी भाषा का उद्भव अपभ्रंश के अर्धमागधी, शौरसेनी और मागधी रूपों से हुआ है।

हिन्दी सभी भारतीय आर्य भाषाओं की बड़ी बहन है और सबसे अधिक जनसमूह द्दारा बोली-समझी जाती है। हिन्दी की तीन कालक्रमिक स्थितियाँ हैं-- 1) आदिकाल (सन् 1000 से 1500 ई.) 2) मध्यकाल (सन् 1500 से 1800 ई.) 3) आधुनिक काल (सन् 1800 से आज तक) 

1) आदिकाल:- आधुनिक आर्यभाषा हिन्दी का आदिकाल अपभ्रंश तथा प्राकृत से अत्यधिक प्रभावित था। आदिकालीन नाथों और सिध्दों ने इसी भाषा में धर्म प्रचार किया था। इस काल में हिन्दी में मुख्य रूप से वही ध्वनियाँ मिलती हैं जो अपभ्रंश में प्रयुक्त होती थीं। अपभ्रंश के अलावा आदिकालीन हिन्दी में 'ड़', 'ढ़' आदि ध्वनियाँ आई हैं। मुसलमान शासकों के प्रभाव से अरबी तथा फारसी के कुछ शब्दों के कारण भी कुछ नये व्यंजन- ख, ज, फ, आदि आ गये। ये व्यंजन अपभ्रंश में नहीं मिलते थे। अपभ्रंश के तीन लिंग थे। किन्तु प्राचीन हिन्दी में नपुंसक लिंग समाप्त हो गया। प्राचीन काल में चारण भाटों ने इसी भाषा में डिंगल साहित्य अर्थात् 'रासो' ग्रंथों का निर्माण किया। 

2) मध्यकाल:- इस काल में अपभ्रंश का प्रभाव लगभग समाप्त हो गया और हिन्दी की तीन प्रमुख बोलियाँ विशेषकर अवधी, ब्रज तथा खड़ी बोली स्वतन्त्र रूप से प्रयोग में आने लगी । साहित्यिक दृष्टि से इस युग में मुख्यत: ब्रज और अवधी में साहित्य निर्माण हुआ। कृष्णभक्ति शाखा के संत कवियों ने ब्रज भाषा में अपने ग्रन्थों का निर्माण किया तथा रामभक्ति शाखा के कवियों ने अवधी भाषा में अपनी रचनाओं का निर्माण किया। इसके साथ ही प्रेमाश्रयी शाखा के सूफी कवियों ने भी अवधी में अपनी रचनाएँ लिखीं। ब्रज तथा अवधी के साथ-साथ खड़ी बोली का भी प्रयोग इस युग में काफी पनपा। मुसलमान शासकों के प्रभाव से खड़ी बोली में अरबी तथा फारसी शब्द प्रचलित हुए और उसके विकास का श्रीगणेश हुआ। 

3) आधुनिक काल:- अठारहवीं शती में ब्रज तथा अवधी भाषा की शक्ति तथा प्रभाव क्षीण होता गया और राजनीतिक परिवर्तनों के कारण उन्नीसवीं शती के प्रारम्भ से ही खड़ी बोली का मध्यप्रदेश की हिन्दी पर भारी प्रभाव पड़ा। बोलचाल, राजकाज तथा साहित्य के क्षेत्र में खड़ी बोली हिन्दी का व्यापक पैमाने पर प्रयोग होने लगा था। भाषा-विज्ञान की दृष्टि से हिन्दी भाषा के पाँच उपभाषा वर्ग माने गये हैं- 

1) पश्चिमी हिन्दी-- इसके अन्तर्गत कौरवी (खड़ी बोली), बागरू (हरियाणवी), ब्रज, कन्नौजी एवं बुंदेली। 

2) पूर्वी हिन्दी-- इसके अन्तर्गत अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी बोलियाँ। 

3) बिहारी हिन्दी-- इसके अन्तर्गत भोजपुरी, मैथिली, मगही बोलियाँ।  
भारतीय बोलियों का क्षेत्र 

4) राजस्थानी हिन्दी-- इसके अन्तर्गत मारवाड़ी, जयपुरी (हाड़ोती), मेवाती और मालवी आदि बोलियाँ आती हैं। 

5) पहाड़ी हिन्दी-- इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से गढ़वाली तथा कुमाउँनी बोलियाँ आती हैं।

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

'हलीम' उवाच

प्रत्यय
परिभाषा:
वे शब्दांश जो किसी शब्द के अन्त में लगकर उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते
हैं,
अर्थात् नये अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे –
समाज + इक = सामाजिक
सुगन्ध + इत = सुगन्धित
भूलना + अक्कड़ = भुलक्कड़
मीठा + आस = मिठास
अतः प्रत्यय लगने पर शब्द एवं शब्दांश में सन्धि नहीं होती बल्कि शब्द के अन्तिम
वर्ण में
मिलने वाले प्रत्यय के स्वर की मात्रा लग जायेगी, व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है जैसे
लोहा + आर = लुहार
नाटक + कार = नाटककार
प्रकार:
हिन्दी में प्रत्यय मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं-
(i)कृदन्त प्रत्यय (ii)तद्धित प्रत्यय
1. कृदन्त प्रत्यय:
वे प्रत्यय जो धातुओं अर्थात् क्रिया पद के मूल रूप के साथ लगकर नये शब्द का निर्माण
करते हैं कृदन्त या कृत प्रत्यय कहलाते हैं। हिन्दी क्रियाओं में अन्तिम वर्ण ‘ना’
का लोपकर शेष
शब्द के साथ प्रत्यय का योग किया जाता है। कृदन्त या कृत प्रत्यय 5 प्रकार के होते हैं-
(i)कर्त्तुवाचक:
वे प्रत्यय जो कर्त्तुवाचक शब्द बनाते हैं जैसे-
अक = लेखक, नायक, गायक,
पाठक
अक्कड़ = भुलक्कड़, घुमक्कड़, पियक्कड़, कुदक्कड़
आक = तैराक, लड़ाक
आलू = झगड़ाल
आकू = लड़ाक
आड़ी = खिलाड़ी
इयल = अडि़यल, मरियल
एरा = लुटेरा, बसेरा
ऐया = गवैया,
ओड़ा = भगोड़ा
ता = दाता,
वाला = पढ़नेवाला
हार = राखनहार, चाखनहार
(ii)कर्मवाचक = वे प्रत्यय जो
कर्म के अर्थ को प्रकट करते हैं
औना = खिलौना (खेलना)
नी = सूँघनी (सूँघना)
(iii)करणवाचक = वे प्रत्यय जो
क्रिया के कारण को बताते हैं
आ = झूला (झूलना)
ऊ = झाडू (झाड़ना)
न = बेलन (बेलना)
नी = कतरनी (कतरना)
(iii)भाववाचक = वे प्रत्यय जो
क्रिया से भाववाचक संज्ञा का निर्माण करते हैं।
अ = मार, लूट, तोल,
लेख
आ = पूजा
आई = लड़ाई, कटाई, चढ़ाई, सिलाई
आन = मिलान, चढान, उठान,
उड़ान
आप = मिलाप, विलाप
आव = चढ़ाव, घुमाव, कटाव
आवा = बुलावा
आवट = सजावट, लिखावट, मिलावट
आहट = घबराहट, चिल्लाहट
ई = बोली
औता = समझौता
औती = कटौती, मनौती
ती = बढ़ती, उठती, चलती
त = बचत, खपत, बढ़त
न = फिसलन, ऐंठन
नी = मिलनी
(v) क्रिया बोधक = वे प्रत्यय
जो क्रिया का ही बोध कराते हैं
हुआ = चलता हुआ, पढ़ता हुआ
2. तद्धित प्रत्यय:
वे प्रत्यय जो क्रिया पदों के अतिरिक्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों के साथ
लगकर
नये शब्द का निर्माण करते हैं उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं। जैसे
छात्र + आ = छात्रा
देव + ई = देवी
मीठा+आस = मिठास
अपना+पन = अपनापन
तद्धित प्रत्यय 6 प्रकार के होते हैं।
(i)कर्त्तुवाचक तद्धित प्रत्यय
– वे प्रत्यय जो किसी संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्द
के साथ जुड़कर कर्त्तुवाचक शब्द का निर्माण करते हैं।-
आर = लुहार, सुनार
इया = रसिया
ई = तेली
एरा = घसेरा
(ii)भाववाचक तद्धित प्रत्यय –
वे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के साथ
जुड़कर
भाववाचक संज्ञा बनाते हैं।
आई = बुराई
आपा = बुढ़ापा
आस = खटास, मिठास
आहट = कड़वाहट
इमा = लालिमा
ई = गर्मी
ता = सुन्दरता, मूर्खता, मनुष्यता,
त्व = मनुष्यत्व, पशुत्व
पन = बचपन, लड़कपन, छुटपन
(iii)सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय
– इन प्रत्ययों के लगने से सम्बन्ध वाचक शब्दों की
रचना होती है।
एरा = चचेरा, ममेरा
इक = शारीरिक
आलु = दयालु, श्रद्धालु
इत = फलित
ईला = रसीला, रंगीला
ईय = भारतीय
ऐला = विषैला
तर = कठिनतर
मान = बुद्धिमान
वत् = पुत्रवत, मातृवत्
हरा = इकहरा
जा = भतीजा, भानजा
ओई = ननदोई
(iii)अप्रत्यवाचक तद्धित प्रत्यय
– संस्कृत के प्रभाव के कारण संज्ञा के साथ अप्रत्यवाचक
प्रत्यय लगाने से सन्तान का बोध होता है।
अ = वासुदेव, राघव, मानव
ई = दाशरथि, वाल्मीकि, सौमित्रि
एय = कौन्तेय, गांगेय, भागिनेय
य = दैत्य, आदित्य
ई = जानकी, मैथिली, द्रोपदी, गांधारी
(v) ऊनतावाचक तद्धित प्रत्यय
– संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के साथ
प्रयुक्त होकर
ये उनके लघुता सूचक शब्दों का निर्माण करते हैं।
इया = खटिया, लुटिया, डिबिया
ई = मण्डली, टोकरी, पहाड़ी, घण्टी
ओला = खटोला, संपोला
(अप) स्त्रीबोधक तद्धित प्रत्यय:
वे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के साथ
लगकर
उनके स्त्रीलिंग का बोध कराते है।
आ = सुता, छात्रा, अनुजा
आइन = ठकुराइन, मुंशियाइन
आनी = देवरानी, सेठानी, नौकरानी
इन = बाघिन, मालिन
नी = शेरनी, मोरनी
उर्दू के प्रत्यय
हिन्दी की उदारता के कारण उर्दू के कतिपय प्रत्यय हिन्दी में भी प्रयुक्त होने
लगे हैं। जैसे
गर = जादूगर, बाजीगर, कारीगर, सौदागर
ची = अफीमची, तबलची, बाबरची, तोपची
नाक = शर्मनाक, दर्दनाक
दार = दुकानदार, मालदार, हिस्सेदार, थानेदार
आबाद = अहमदाबाद, इलाहाबाद, हैदराबाद
इन्दा = परिन्दा, बाशिन्दा, शर्मिन्दा, चुनिन्दा
इश = फरमाइश, पैदाइश, रंजिश
इस्तान = कब्रिस्तान, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान
खोर = हरामखोर, घूसखोर, जमाखोर, रिश्वतखोर
गाह = ईदगाह, बंदरगाह, दरगाह, आरामगाह
गार = मददगार, यादगार, रोजगार, गुनाहगार
गीर = राहगीर, जहाँगीर
गी = दीवानगी, ताजगी, सादगी
गीरी = कुलीगीरी, मुंशीगीरी
नवीस = नक्शानवीस, अर्जीनवीस
नामा = अकबरनामा, सुलहनामा, इकरारनामा
बन्द = हथियारबन्द, नजरबन्द, मोहरबन्द
बाज = नशेबाज, चालबाज, दगाबाज
मन्द = अकलमन्द, जरूरतमंद, ऐहसानमंद
साज = जिल्दसाज, घड़ीसाज, जालसाज
विशेष: कई बार प्रत्यय लगने पर मूलशब्द के आदि मध्य या अन्त में प्रयुक्त स्वरों
में
परिवर्तन हो जाता है। जैसे
इक = समाज-सामाजिक, इतिहास-ऐतिहासिक,
नीति-नैतिक, पुराण-पौराणिक, भूगोल-
भौगोलिक, लोक-लौकिक
य = मधुर-माधुर्य, दिति-दैत्य, सुन्दर-सौन्दर्य,
शूर-शौर्य
इ = दशरथ-दाशरथि, सुमित्रा-सौमित्रि
एय = गंगा-गांगेय, कुन्ती-कौन्तेय
आइन = ठाकुर,-ठकुराइन, मुंशी-मुंशियाइन
इनी = हाथी-हथिनी
एरा = चाचा-चचेरा, लूटना-लुटेरा
आई = साफ-सफाई, मीठा-मिठाई, बोना-बुवाई
अक्कड़ = भूलना-भुलक्कड़, पीना-पियक्कड़
आरी = पूजना-पुजारी, भीख-भिखारी
ऊटा = काला-कलूटा
आव = खींचना-खिंचाव, घूमना-घुमाव
आस = मीठा-मिठास
आपा = बूढ़ा-बुढ़ापा
आर = लोहा-लुहार, सोना-सुनार
इया = चूहा-चुहिया, लोटा-लुटिया
वाड़ी = फूल-फुलवाड़ी
वास = रानी-रनिवास
पन = छोटा-छुटपन, बच्चा-बचपन,
लड़का-लड़कपन
हारा = मनी-मनिहारा
एल = नाक-नकेल
आवना = लोभ-लुभावना

हिन्दी में प्रत्यय विचार (लिंग निर्धारण के विशेष सन्दर्भ में)


हिन्दी में प्रत्यय (Suffix) उस शब्दांश को कहते हैं; जो शब्द के अन्त में जुड़कर शब्दों के अर्थ एवं रूप को बदलने की क्षमता रखता है। प्रत्यय का कोई स्वतंत्र अर्थ नहीं होता परंतु शब्द के साथ जुड़कर कुछ न कुछ अर्थ अवश्य देता है। इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से नहीं किया जा सकता वरन् ये शब्दों के साथ जुड़कर ही प्रयुक्त होते हैं। शब्दों के साथ प्रत्यय के जुड़ने पर मूल शब्दों में कुछ रूपस्वनिमिक परिवर्तन भी होते हैं।
अंग्रेजी में Affixes की तीन अवस्था होती है-
1. Preffix (पूर्व प्रत्यय)
2. Infix (मध्य प्रत्यय)
3. Suffix (अंत्य प्रत्यय)
परन्तु हिन्दी में पूर्व प्रत्यय एवं अंत्य प्रत्यय की ही व्यवस्था है, मध्य प्रत्यय की नहीं। पूर्व प्रत्यय को उपसर्ग कहा गया है। प्रत्यय शब्द केवल ‘अन्त्य’ प्रत्यय के लिए ही प्रयुक्त होता है। प्रस्तुत आलेख में ‘पर’ अथवा ‘अन्त्य’ प्रत्यय के लिए ही प्रत्यय का प्रयोग किया गया है। संस्कृत में दो प्रकार के प्रत्यय होते हैं-
1. सुबन्त
2. तिङन्त
सुबन्त अर्थात् सुप् प्रत्यय सभी नामपद अर्थात् संज्ञा अथवा विशेषण के साथ जुड़ते हैं। यथा- रामः, बालकौ, बालकस्य, सुन्दरः, मनोहरं आदि।
तिङन्त अर्थात् तिङ् प्रत्यय आख्यात अर्थात् क्रिया के साथ जुड़ते हैं। यथा- गच्छति, गमिष्यन्ति, अगच्छत्, गच्छेयूः आदि।
संस्कृत में सुबन्त एवं तिङन्त विभक्ति के द्योतक है। जबकि तद्धित एवं कृदंत को प्रत्यय कहा गया है। हिन्दी में प्रत्यय के दो प्रकार माने गए हैं- तद्धित एवं कृदंत। तद्धित प्रत्यय संज्ञा एवं विशेषण के साथ जुड़ते हैं जबकि कृदंत अर्थात् कृत् प्रत्यय क्रिया के साथ।
तद्धित प्रत्यय -
- ता स्वतंत्रता, ममता, मानवता।
- पन बचपन, पागलपन, अंधेरापन।
- इमा लालिमा, कालिमा।
- त्व अमरत्व, ममत्व, कृतित्व, व्यक्तित्व।

कृदंत प्रत्यय -
-अक - पाठक, लेखक, दर्शक, भक्षक।
- आई - पढ़ाई, लड़ाई, सुनाई, चढ़ाई, कटाई, बुनाई।
- आवट - लिखावट, सजावट, बुनावट, मिलावट। हिन्दी में किसी शब्द को एक वचन से बहुवचन बनाने पर जो परिवर्तन होता है वह प्रत्यय के स्तर पर ही होता है, ऐसे प्रत्यय को भाषावैज्ञानिक दृष्टि से बद्धरूपिम; (Bound Morphome) की संज्ञा दी गई है, जैसे-
एकवचन बहुवचन प्रत्यय
1. लड़का लड़के -ए
2. कुर्सी कुर्सियाँ -याँ
3. मेज मेजें -एँ
4. समाज समाज -शून्य

उपर्युक्त उदाहरणों में -ए , -या -एँ तथा शून्य बहुवचन प्रत्यय जुड़े हैं। शून्य प्रत्यय को शून्य विभक्ति कहा जाता है। बहुवचन प्रत्यय के भी दो रूप मिलते हैं। पहला रूप वह प्रत्यय जो शब्दों के बहुवचन रूप बनने पर सीधे-सीधे रूपों में दिखे। जैसा कि उपर्युक्त उदाहरणों में दिया गया है। दूसरा रूप वह जो तिर्यक रूप में दिखे, जैसे- लड़कों, कुर्सियों, मेजों, समाजों, मनुष्यों, जानवरों आदि में ‘-ओं’ के रूप में। दोनों बहुवचन प्रत्ययों में व्याकरणिक दृष्टि से वाक्यगत जो अंतर है वह यह कि सीधे रूप के साथ कोई परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं जुड़ता। हाँ, आकारान्त शब्दों के बहुवचन रूप बनने पर उसमें ‘-ए’ प्रत्यय जुड़ता है परंतु परसर्ग (विभक्ति चिह्न) के जुड़ने पर वह बहुवचन न होकर एकवचन रूप हो जाता है।

उदाहरण के लिए-
कपड़े फट गए।
कपड़े पर दाग है। (एकवचन रूप)
लड़के खेल रहे हैं।
लड़के ने खेला है। (एकवचन रूप)
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि बहुवचन प्रत्यय के लगने पर कोई परसर्ग नहीं लगेगा। आकारांत शब्दों में बहुवचन प्रत्यय ‘-ए’ लगने पर उसके साथ परसर्ग तो लग सकता है परंतु परसर्ग लगने पर बहुवचन न होकर एकवचन रूप हो जाता है। सभी आकारांत शब्दों में बहुवचन प्रत्यय (-ए) नहीं लगता। यह प्रत्यय केवल जातिवाचक, पुल्लिंग संज्ञाओं में ही लगता है। व्यक्तिवाचक, संबंधवाचक एवं जातिवाचक स्त्रीलिंग संज्ञाओं में नहीं लगता।

बहुवचन का तिर्यक रूप
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि बहुवचन प्रत्यय का तिर्यक रूप ‘-ओं’ है। किसी भी शब्द में ‘-ओं’ प्रत्यय लग सकता है। -ओं प्रत्यय से बनने वाले सभी शब्द बहुवचन होते हैं परंतु इनका वाक्यगत प्रयोग बिना परसर्ग के नहीं हो सकता है। दूसरे शब्दों में तिर्यक बहुवचन प्रत्यय(-ओं) का प्रयोग परसर्ग सहित ही होता है,
जैसे-
लड़कों को बुलाओ।
लड़कों बुलाओ।
कुर्सियों पर धूल जमा है।
*कुर्सियों धूल जमा है।
अलग-अलग मेजों को लगाओ।
*अलग-अलग मेजों लगाओ। (*यह चिह्न अस्वाभाविक प्रयोग का वाचक है)
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि बहुवचन शब्दों का तिर्यक रूप प्रत्यय -ओं का प्रयोग परसर्ग सहित ही प्रयुक्त होगा, परसर्ग के बिना नहीं।
लिंग (Gender) : स्वरूप एवं निर्धारण- किसी भी भाषा में लिंग वह है, जिसके द्वारा मूर्तवस्तु अथवा अमूर्त भावनात्मक शब्दों के बारे में यह जाना जाता है कि वह पुरुष का बोध कराता है स्त्री का अथवा दोनों का। लिंग का अध्ययन व्याकरणिक कोटियों (Grammetical Categories) के अंतर्गत किया जाता है।
अधिकांश भाषाओं में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसक लिंग। परंतु हिन्दी में दो ही लिंग हैं- पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। हिन्दी भाषा में लिंग निर्धारण के संदर्भ में अभी तक कोई समुचित सिद्धान्त अथवा व्यवस्था नहीं दी गई है, जिसके आधार पर लिंग का निर्धारण आसानी से किया जा सके। हिन्दीतर भाषियों की हिन्दी सीखते समय सबसे बड़ी समस्या यही है कि किन शब्दों को पुल्लिंग माने, किन शब्दों को स्त्रीलिंग और मानने का आधार क्या है?
इस संदर्भ में प्रसिद्ध वैयाकरणों ने भी अपनी विवशता प्रकट की है। हिन्दी के मूर्धन्य वैयाकरण कामता प्रसाद गुरू के शब्दों में निम्नलिखित कथन उद्धृत है-
‘‘हिन्दी में अप्राणीवाचक शब्दों का लिंग जानना विशेष कठिन है; क्योंकि यह बात अधिकांश व्यवहार के अधीन है। अर्थ और रूप दोनों ही साधनों से इन शब्दों का लिंग जानने में कठिनाई होती है’’। -कामता प्रसाद गुरू- हिन्दी व्याकरण- पृ.151. 1920
हिन्दी में लिंग का निर्धारण कुछ हद तक प्रत्ययों के आधार पर किया जा सकता है। जब किसी शब्द में कोई प्रत्यय जुड़ता है तो मूल शब्द संज्ञा, विशेषण अथवा कृदंत होते हैं। यदि संज्ञा है तो या तो स्त्रीलिंग होगा अथवा पुल्लिंग। विशेषण शब्दों का अपना कोई लिंग नहीं होता। जिस संज्ञा शब्द की विशेषता बताते हैं उन्हीं संज्ञा के साथ विशेषण की अन्विति होती है।
वह प्रत्यय जो किसी शब्द के साथ जुड़कर उस शब्द को पुल्लिंग बनाता है, उसे पुरुषवाची तथा वह प्रत्यय जो किसी शब्द के साथ जुड़कर स्त्रीलिंग बनाता है, उसे स्त्रीवाची प्रत्यय कह सकते हैं। इस प्रकार प्रयोग अथवा प्रकार्य की दृष्टि से दो प्रकार के प्रत्यय हो सकते हैं- 1. स्त्रीवाची प्रत्यय और 2. पुरुषवाची प्रत्यय।


स्त्रीवाची प्रत्यय
जिस शब्द के साथ स्त्रीवाची प्रत्यय जुड़ते हैं वे सभी शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। नीचे कुछ स्त्रीवाची प्रत्ययों एवं उनसे बनने वाले शब्दों के उदाहरण दिए जा रहें हैं-
‘-ता’ स्त्रीवाची प्रत्यय - इस प्रत्यय के शब्द में जुड़ने से जो शब्द बनते हैं, वे सभी भाववाचक स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द बनते हैं-
मूलशब्द प्रत्यय योग भाववाचक संज्ञा
मानव -ता मानवता
स्वतंत्र -ता स्वतंत्रता
पतित -ता पतिता
विवाह -ता विवाहिता
महत् -ता महत्ता
दीर्घ -ता दीर्घता
लघु -ता लघुता
दुष्ट -ता दुष्टता
प्रभु -ता प्रभुता
आवश्यक -ता आवश्यकता
नवीन -ता नवीनता आदि।
नोटः- -ता प्रत्यय जिन शब्दों में लगता है, वे शब्द बहुधा विशेषण पद होते हैं। -ता प्रत्यय लगने के पश्चात् वे सभी (विशेषण अथवा संज्ञा) शब्द भाववाचक संज्ञा हो जाते हैं। प्रत्ययों का किसी शब्द में जुड़ना भी किसी नियम के अंतर्गत होता है, उसकी एक व्यवस्था होती है। एक शब्द में दो-दो विशेषण प्रत्यय अथवा एक ही शब्द में दो-दो भाववाचक प्रत्यय नहीं लग सकते। हाँ, विशेषण प्रत्यय के साथ भाववाचक प्रत्यय अथवा भाववाचक प्रत्यय के साथ विशेषण प्रत्यय जुड़ सकते हैं, जैसे- आत्म+ ईय(विशेषण) + ता(भाववाचक) - आत्मीयता। ’ मम+ ता (भाववाचक) +त्व (भाववाचक) - नहीं जुड़ सकते। संज्ञा शब्द में विशेषण प्रत्यय के साथ संज्ञा प्रत्यय जुड़ सकता है। जहाँ विशेषण शब्द में विशेषण प्रत्यय नहीं जुड़ता वहीं संज्ञा शब्द में संज्ञा प्रत्यय जुड़ सकता है।,
उपर्युक्त सभी -ता प्रत्यय से युक्त भाववाचक संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग हैं। -ता प्रत्यय से कुछ समूह वाचक अथवा अन्य शब्द भी निर्मित होते हैं परंतु वे शब्द भी स्त्रीलिंग ही होते हैं- जन+ता = जनता, कवि+ता= कविता आदि। इनकी संख्या सीमित है।
(-इमा) स्त्रीवाची प्रत्यय-
मूल शब्द प्रत्यय योग भाववाचक शब्द
लाल -इमा लालिमा
काला -इमा कालिमा
रक्त -इमा रक्तिमा
गुरू -इमा गरिमा
लघु -इमा लघिमा आदि।
-इमा प्रत्यय से युक्त सभी शब्द भाववाचक स्त्रीलिंग होते हैं।
-आवट स्त्रीवाची प्रत्यय-
मूल शब्द प्रत्यय योग भाववाचक शब्द
लिख -आवट लिखावट
रूक -आवट रुकावट
मेल -आवट मिलावट आदि।
उपर्युक्त सभी शब्द स्त्रीलिंग हैं। -आवट प्रत्यय कृदंत प्रत्यय है। उससे बनने वाले सभी शब्द भाववाचक संज्ञा होते हैं।
-आहट स्त्रीवाची प्रत्यय-
कड़ूआ -आहट कड़ुवाहट
चिकना -आहट चिकनाहट
गरमा -आहट गरमाहट
मुस्करा -आहट मुस्कराहट आदि।
उपर्युक्त सभी भाववाचक संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग हैं। -आहट प्रत्यय कृदंत प्रत्यय है।
-ती स्त्रीवाची प्रत्यय-
यह प्रत्यय तद्धित और कृदंत दोनों रूपों में प्रयुक्त हो सकता है। इससे बनने वाले सभी शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। (सजीव शब्दों को छोड़कर)
पा -ती पावती
चढ़ -ती चढ़ती
गिन -ती गिनती
भर -ती भरती
मस्(त) -ती मस्ती आदि।
-इ/-ति प्रत्यय-
-इ, अथवा -ति प्रत्यय से युक्त शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। प्राणीवाचक शब्दों को छोड़कर। (जैसे- कवि, रवि आदि)।
कृ -ति कृति
प्री -ति प्रीति
शक् -ति शक्ति
स्था -ति स्थिति आदि।
इसी प्रकार भक्ति, कांति, क्रांति, नियुक्ति, जाति, ज्योति, अग्नि, रात्रि, सृष्टि, दृष्टि, हानि, ग्लानि, राशि, शांति, गति आदि सभी इकारांत शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
नोटः- जब दो शब्द जुड़ते हैं तो द्वितीय घटक के आधार पर ही पूरे पद का लिंग निर्धारण होता है-
पुनः + युक्ति = पुनरुक्ति(स्त्री।)
सहन + शक्ति = सहनशक्ति(स्त्री।)
मनस् + स्थिति = मनःस्थिति(स्त्री।)
यदि द्वितीय घटक स्त्रीलिंग है तो संपूर्ण घटक स्त्रीलिंग होगा, इसके विपरीत पुल्लिंग।,
-आई स्त्रीवाची प्रत्यय
सच -आई सचाई
साफ -आई सफाई
ढीठ -आई ढीठाई आदि।
नोटः- -आई प्रत्यय कृदंत और तद्धित दोनों रूपों में प्रयुक्त होता है। -आई प्रत्यय से युक्त सभी भाववाचक शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
-ई स्त्रीवाची प्रत्यय
-ईकारांत सभी भाववाचक शब्द स्त्रीलिंग होते हैं-
सावधान-ई =सावधानी खेत-ई =खेती महाजन-ई= महाजनी
डाक्टर-ई = डाक्टरी गृहस्थ-ई =गृहस्थी दलाल-ई =दलाली आदि।
-औती स्त्रीवाची प्रत्यय
बूढ़ा-औती =बुढ़ौती मन-औती = मनौती
फेर-औती = फिरौती चुन-औती = चुनौती आदि।
उपर्युक्त सभी भाववाचक शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-आनी स्त्रीवाची प्रत्यय-
यह प्रत्यय स्त्रीवाचक प्रत्यय है। किसी भी सजीव शब्द के साथ जुड़कर स्त्रीलिंग बनाता है, जैसे-
पंडित-आनी = पंडितानी, मास्टर-आनी = मस्टरानी आदि।
-इन स्त्रीवाची प्रत्यय- यह प्रत्यय भी -आनी प्रत्यय की भांति ही सजीव शब्दों में लगकर स्त्रीलिंग बनाता है, जैसे-
सुनार-इन=सुनारिन, नात/नाती-इन=नातिन, लुहार-इन=लुहारिन आदि।
पुरुषवाची प्रत्यय
पुरुषवाची प्रत्यय उन शब्दांशों को कहते हैं, जो किसी शब्द के साथ जुड़कर पुल्लिंग बनाते हैं। स्त्रीवाची प्रत्ययों की भांति पुरुषवाची प्रत्ययों की भी संख्या अधिक है।
नीचे कुछ पुरुषवाची प्रत्यय के उदहारण दिए गए हैं।
-त्व पुरुषवाची प्रत्यय - यह भाववाचक तद्धित प्रत्यय है, जिन शब्दों के साथ यह प्रत्यय जुड़ता है, वे शब्द भाववाचक पुल्लिंग हो जाते हैं।
मम-त्व = ममत्व बंधु-त्व = बंधुत्व
एक-त्व = एकत्व घन-त्व = घनत्व आदि।
नोटः- उपर्युक्त सभी भाववाचक शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-आव प्रत्यय
यह एक कृदंत प्रत्यय है। इससे बनने वाले सभी शब्द पुल्लिंग होते हैं।
लग-आव = लगाव बच-आव = बचाव
गल-आव = गलाव पड़-आव = पड़ाव
झुक-आव = झुकाव छिड़क-आव = छिड़काव आदि।

-आवा पुरुषवाची प्रत्यय
यह प्रत्यय भी -आव प्रत्यय की भांति कृदंत प्रत्यय है। इससे बनने वाले सभी शब्द पुल्लिंग होते हैं।
बुला-आवा = बुलावा
पहिर-आवा = पहिरावा
-पन/पा पुरुषवाची प्रत्यय
ये प्रत्यय भाववाचक तद्धित प्रत्यय हैं। ये किसी भी शब्द के साथ जुड़कर भाववाचक पुल्लिंग शब्द बनाते हैं।
काला -पन = कालापन
बाल -पन = बालपन
लचीला -पन = लचीलापन
बूढ़ा -पा = बुढ़ापा
मोटा -पा = मोटापा
अपना -पन = अपनापन आदि।
-ना पुरुषवाची प्रत्यय
यह एक कृदंत प्रत्यय है। हिन्दी में ‘-ना’ से युक्त सभी क्रियार्थक संज्ञाएँ (Gerund) पुल्लिंग होती हैं। इन्हीं क्रियार्थक संज्ञाओं में से ‘-ना’ प्रत्यय हटा लेने पर जो भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं, वे सभी स्त्रीलिंग होती हैं। उदहारण के लिए- जाँचना, लूटना, महकना, डाँटना आदि सभी क्रियार्थक संज्ञाएँ पुल्लिंग हैं; जबकि जाँच, लूट, महक, डाँट सभी भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग हैं।
क्रियार्थक संज्ञा से दो प्रकार से प्रत्ययों का लोप संभव है। पहला वह जो क्रियार्थक संज्ञा से सीधे -ना प्रत्यय का लोप कर भाववाचक संज्ञा बनती हैं। दूसरी वह जो क्रियार्थक संज्ञा में से -आ प्रत्यय का लोप कर भाववाचक संज्ञा बनती हैं। क्रियार्थक संज्ञा में से -ना एवं -आ प्रत्यय के लोप से सभी भाववाचक संज्ञा बनती हैं, साथ ही उक्त सभी संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
ऊपर -ना लोप के कुछ उदहारण दिए गए हैं। -आ लोप के उदहारण इस प्रकार हैं-
धड़कना-धड़कन,जलना-जलन, चलना-चलन, लगना-लगन आदि।
इनमें धड़कन, जलन, चलन, लगन, आदि भाववाचक स्त्रीलिंग संज्ञा हैं।
नीचे कुछ क्रियार्थक संज्ञा एवं -ना प्रत्यय लोप के उदाहरण दिए जा रहें हैं। जहाँ क्रियार्थक संज्ञा पुल्लिंग हैं, वहीं -ना लोप भाववाचक संज्ञा स्त्रीलिंग हैं-
-ना युक्त क्रियार्थक संज्ञा लिंग -ना प्रत्यय लोप लिंग
जाँचना पुल्लिंग जाँच स्त्रीलिंग
लूटना - लूट -
पहुँचना - पहुँच -
चमकना - चमक -
नीचे कुछ -ना प्रत्यय युक्त क्रियार्थक संज्ञा एवं -आ प्रत्यय लोप के उदहारण दिए जा रहें हैं। जहाँ -ना प्रत्यय युक्त क्रियार्थक संज्ञा पुल्लिंग हैं, वहीं -आ प्रत्यय लोप भाववाचक संज्ञा स्त्रीलिंग।
-ना युक्त क्रि.सं. लिंग -आ लोप प्रत्यय लिंग
धड़कना पुल्लिंग धड़कन स्त्रीलिंग
जलना - जलन -
चलना - चलन - आदि।
कुछ उर्दू के स्त्रीवाची और पुरुषवाची प्रत्यय
हिंदी में कुछ उर्दू के प्रत्ययों का प्रयोग हो रहा है, जो स्त्रीवाची और पुरुषवाची प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त हो रहे हैं। इनके आधार पर भी लिंग निर्धारण संभव है; जैसे-
उर्दू के पुरुषवाची प्रत्यय-
-दान
चायदान, पायदान, इत्रदान, पानदान, कलमदान, कदरदान, रोशनदान, ख़ानदान आदि सभी शब्द पुल्लिंग होते हैं।
-आना
नजराना, घराना, जुर्माना, याराना, मेहनताना, दस्ताना, आदि सभी पुल्लिंग शब्द हैं।
-आत
जवाहरात, कागज़ात, मकानात, ख्यालात आदि पुल्लिंग शब्द हैं।
कुछ उर्दू के स्त्रीवाची प्रत्यय-
-गी - दिवानगी, विरानगी, नाराजगी, ताजगी, पेचीदगी, शर्मिंदगी, रवानगी आदि सभी शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-इयत-असलीयत, खासियत, मनहुसियत, मासूमियत, महरूमियत, इंसानियत, अंग्रेजियत, कब्ज़ियत आदि सभी शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-इश - बंदिश, रंजिश, ख्वाहिश, आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-अत -नजा़कत, खि़लाफ़त, हिफ़ाज़त आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं।
-गिरी -नेतागिरी, राजगिरी, गुंडागिरी, बाबूगिरी आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं।
उपर्युक्त प्रत्ययों में कुछ महत्त्वपूर्ण स्त्रीवाची एवं पुरुषवाची प्रत्ययों के उदहारण दिए गए हैं। इनमें कुछ कृदंत प्रत्यय हैं, कुछ तद्धित प्रत्यय तथा कुछ कृदंत एवं तद्धित दोनों रूपों में प्रयुक्त प्रत्यय। हिंदी के लिंग निर्धारण की एक दूसरी व्यवस्था दी जा रही है, जिसके अंतर्गत अधिकांष शब्द आ जाते हैं। हिन्दी में बहुवचन प्रत्यय एँ, याँ, ए एवं शून्य होता है। इसमें एँ तथा याँ प्रत्यय स्त्रीवाची प्रत्यय हैं। ये जिस किसी शब्द के साथ जुड़ते हैं, वे सभी शब्द स्त्रीलिंग होते हैं तथा -ए एवं -शून्य प्रत्यय जिस शब्द के साथ जुड़ते हैं, वे सभी पुल्लिंग होते हैं। ‘-ए’ बहुवचन प्रत्यय केवल आकारांत पुल्लिंग, जातिवाचक शब्द के साथ ही जुड़ते हैं। यहाँ शून्य से तात्पर्य है प्रत्यय रहित। जिस शब्द के साथ कोई भी बहुवचन प्रत्यय नहीं जुड़ता वहाँ शून्य प्रत्यय होता है। शून्य प्रत्यय वाले शब्द स्त्रीलिंग एवं कुछ शब्द पुल्लिंग भी हो सकते हैं। परंतु ‘-ए’ बहुवचन प्रत्यय वाले सभी शब्द पुल्लिंग होते हैं। नीचे इनके उदहारण दिए जा रहें हैं-
एकव. शब्द बहुव. शब्द प्रत्यय लिंग
मेज़ मेज़ें -एँ स्त्रीलिंग
कुर्सी कुर्सियाँ -याँ -
लकड़ी लकड़ियाँ -याँ -
भावना भावनाएँ -एँ -
पुस्तक पुस्तकें -एँ -
जहाज जहाजें -एँ -
फोड़ा फोड़े -ए पुल्लिंग
लड़का लड़के -ए -
प्रेम प्रेम शून्य -
प्यार प्यार शून्य -
घोड़ा घोड़े -ए -
कमरा कमरे -ए - आदि।
स प्रकार हिंदी में प्रत्यय पर विचार करते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रत्ययों के आधार पर हिंदी में लिंग निर्धारण संबंधी समस्याओं को दूर किया जा सकता है, जो प्रस्तुत लेख का उद्देश्य है।
'हलीम' उवाच

सन्धि:
दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं।
अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण)
तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।
ध्वनियों के मेल में स्वर के साथ स्वर (राम+अवतार), स्वर के साथ व्यंजन
(आ+छादन),
व्यंजन के साथ व्यंजन
(जगत्+नाथ),
व्यंजन के साथ स्वर
(जगत्+ईश),
विसर्ग के
साथ स्वर (मनःअनुकूल) तथा विसर्ग के साथ व्यंजन (मनः+हर), का मेल हो सकता है।
प्रकार: सन्धि तीन प्रकार
की होती है
1. स्वर सन्धि 2. व्यंजन सन्धि 3. विसर्ग सन्धि
1.
स्वर सन्धि:
स्वर के साथ स्वर के मेल को स्वर सन्धि कहते हैं। हिन्दी
में स्वर ग्यारह होते हैं। यथा-अ,
आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ तथा व्यंजन प्रायः स्वर की सहायता से बोले जाते हैं।
जैसे ‘राम’ में ‘म’ में ‘अ’ स्वर निहित है। ‘राम+अवतार- में ‘म- का ‘अ- तथा अवतार के ‘अ’
स्वर का मिलन होकर सन्धि होगी।
स्वर सन्धि पाँच प्रकार की होती है- (i) दीर्घ सन्धि (ii)गुण सन्धि (iii) वृद्धि सन्धि (iv)
यण सन्धि (v) अयादि सन्धि
(i) दीर्घ सन्धि:
अ, इ, उ, लघु या ह्रस्व स्वर हैं और आ, ई, ऊ गुरु या दीर्घ स्वर। अतः
अ या आ के साथ अ या आ के मेल से ‘आ’; ‘इ’ या ‘ई’ के साथ ‘इ’ या ई के मेल से ‘ई’
तथा उ या ऊ के साथ उ या ऊ के मेल से ‘ऊ’ बनता है। जैसे:
अ+अ – आ
नयन + अभिराम = नयनाभिराम
चरण + अमृत = चरणामृत
परम + अर्थ = परमार्थ
स + अवधान = सावधान
विच्छेद
रामानुज = राम + अनुज गीतांजलि = गीत + अंजलि
सूर्यास्त = सूर्य + अस्त मुरारि = मुर + अरि
अ + आ = आ
देव + आलय = देवालय सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
रत्न + आकर = रत्नाकर कुश + आसन = कुशासन
विच्छेद
छात्रावास = छात्र + आवास देवानन्द = देव + आनन्द
दीपाधार = दीप + आधार प्रारम्भ = प्र + आरम्भ
आ + अ = आ
सेना + अध्यक्ष = सेनाध्यक्ष विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
तथा + अपि = तथापि युवा + अवस्था= युवावस्था
विच्छेद
कक्षाध्यापक = कक्षा + अध्यापक श्रद्धांजलि = श्रद्धा +
अंजलि
सभाध्यक्ष = सभा + अध्यक्ष द्वारकाधीश = द्वारका +
अधीश
आ + आ = आ
विद्या + आलय = विद्यालय महा + आशय = महाशय
प्रतीक्षा+आलय = प्रतीक्षालय श्रद्धा + आलु = श्रद्धालु
विच्छेद
चिकित्सालय = चिकित्सा + आलय
कृपाकांक्षी = कृपा + आकांक्षी
मायाचरण = माया + आचरण
दयानन्द = दया + आनन्द
इ + इ = ई
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र अभि + इष्ट = अभीष्ट
विच्छेद
गिरीन्द्र = गिरि + इन्द्र अधीन = अधि + इन
इ + ई = ई
हरि + ईश = हरीश परि + ईक्षा = परीक्षा
विच्छेद
अभीप्सा = अभि + ईप्सा अधीक्षक = अधि + ईक्षक
ई + इ = ई
मही + इन्द्र = महीन्द्र लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा
विच्छेद
फणीन्द्र = फणी + इन्द्र श्रीन्दु = श्री +
इन्दु
ई + ई = ई
नारी + ईश्वर = नारीश्वर जानकी + ईश = जानकीश
विच्छेद
रजनीश = रजनी + ईश नदीश = नदी + ईश
उ + उ = ऊ
भानु + उदय = भानूदय गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
विच्छेद
लघूत्तर = लघु + उत्तर कटूक्ति = कटु + उक्ति
ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊध्र्व = भूध्र्व
भू + ऊष्मा = भूष्मा
विच्छेद
चमूर्जा = चमू + ऊर्जा
सरयूर्मि = सरयू + ऊर्मि
(ii)गुण सन्धि:
अ या आ के साथ इ या ई के मेल से ‘ए’ ( Ú ), अ या आ के साथ
उ या ऊ के मेल से ‘ओ’ ( ो ) तथा अ या आ के साथ ऋ के मेल
से ‘अर’
बनता है यथा –
अ + इ = ए
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
स्व + इच्छा = स्वेच्छा
विच्छेद
नेति = न + इति
भारतेन्दु = भारत + इन्दु
अ + ई = ए
नर + ईश = नरेश
सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
विच्छेद
गणेश = गण + ईश
प्रेक्षा = प्र + ईक्षा
आ + इ = ए
महा + इन्द्र = महेन्द्र
यथा +इच्छा = यथेच्छा
विच्छेद
राजेन्द्र = राजा + इन्द्र
यथेष्ट = यथा + इष्ट
आ + ई = ए
राका + ईश = राकेश
द्वारका +ईश = द्वारकेश
विच्छेद
रमेश = रमा + ईश
मिथिलेश = मिथिला + ईश
अ + उ = ओ ओ
पर+उपकार = परोपकार
सूर्य + उदय = सूर्योदय
विच्छेद
प्रोज्ज्वल = प्र + उज्ज्वल
सोदाहरण = स + उदाहरण
अन्त्योदय = अन्त्य + उदय
अ + ऊ = ओ
ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
विच्छेद
समुद्रोर्मि = समुद्र + ऊर्मि
जलोर्जा = जल + ऊर्जा
आ + उ = ओ ओ
महा + उदय = महोदय
यथा+उचित = यथोचित
विच्छेद
शारदोपासक = शारदा + उपासक
महोत्सव = महा + उत्सव
आ + ऊ = ओ ओ
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
महा + ऊर्जा = महोर्जा
विच्छेद
यमुनोर्मि = यमुना + ऊर्मि
महोरू = महा + ऊरू
अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि
शीत + ऋतु = शीतर्तु
विच्छेद
सप्तर्षि = सप्त + ऋषि
उत्तमर्ण = उत्तम + ऋण
आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि
विच्छेद
राजर्षि = राजा + ऋषि
( पपप) वृद्धि सन्धि: अ या आ के साथ ‘ए’ या ‘ऐ’ के मेल से ‘ऐ’ ( ै ) तथा अ या
आ के साथ ‘ओ’ या ‘औ’ के मेल से ‘औ’ ( ौ ) बनता है। यथा:
अ + ए = ऐ
मत + एकता = मतैकता
धन + एषणा = धनैषणा
विच्छेद
एकैक = एक + एक
विश्वैकता = विश्व + एकता
अ + ऐ = ऐ
ज्ञान+ऐश्वर्य = ज्ञानैश्वर्य
स्व+ऐच्छिक = स्वैच्छिक
विच्छेद
मतैक्य = मत + ऐक्य
देवैश्वर्य = देव + ऐश्वर्य
आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव
वसुधा + एव = वसुधैव
विच्छेद
महैषणा = महा+एषणा
तथैव = तथा + एव
आ + ऐ = ऐ
महा+ऐश्वर्य = महैश्वर्य
विच्छेद
गंगैश्वर्य = गंगा + ऐश्वर्य
अ + ओ = औ
दूध + ओदन = दूधौदन
जल + ओघ = जलौघ
विच्छेद
परमौज = परम + ओज
घृतौदन = घृत + ओदन
अ + औ = औ
वन+औषध = वनौषध
तप+औदार्य = तपौदार्य
विच्छेद
भावौचित्य = भाव + औचित्य
भावौदार्य = भाव + औदार्य
आ + ओ = औ
महा + ओज = महौज
गंगा + ओघ = गंगौघ
विच्छेद
महौजस्वी = महा + ओजस्वी
आ + औ = औ
महा+औषध = महौषध
यथा+औचित्य = यथौचित्य
विच्छेद
महौत्सुक्य = महा + औत्सुक्य
महौदार्य = महा + औदार्य
(iv) यण सन्धि:
इ या ई के साथ इनके अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर
इ या ई के स्थान पर ‘य्’ उ या ऊ के साथ इनके अतिरिक्त अन्य स्वर के मेल पर उ या ऊ के
स्थान पर ‘व्’ तथा
‘ऋ’
के साथ अन्य किसी स्वर
के मेल पर ‘र्’ बन
जायेगा तथा मिलने वाले स्वर की मात्रा य्, व्, ‘र्’ में लग जायेगी। यथा
अति + अधिक = अत्यधिक
सु + आगत = स्वागत
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
इसमें विच्छेद करते समय य, व तथा ‘र’ के पूर्व आये हलन्त वर्ण में क्रमशः
इ, ई;
उ ऊ
तथा ऋ की मात्रा लगा देंगे तथा य, व, र में जो स्वर है उस स्वर
के प्रारम्भ से पिछला शब्द
लिख देंगे यथा –
अत्याचार = अति + आचार
अन्वीक्षण = अनु + ईक्षण
मात्रनुमति = मातृ + अनुमति
अभ्यासार्थ अन्य उदाहरण देखिए-
इ + अ = य
अति + अल्प = अत्यल्प
अधि + अक्ष = अध्यक्ष
विच्छेद
गत्यवरोध = गति + अवरोध
व्यवहार = वि + अवहार
यद्यपि = यदि + अपि
इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि
परि + आवरण = पर्यावरण
विच्छेद
अभ्यागत = अभि + आगत
व्यायाम = वि + आयाम
पर्याप्त = परि + आप्त
इ + उ = यु
अभि + उदय = अभ्युदय
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
विच्छेद
रव्युदय = रवि + उदय
उपर्युक्त = उपरि + उक्त
इ + ऊ = यू
नि + ऊन = न्यून
अधि + ऊढ़ा = अध्यूढ़ा
विच्छेद
अध्येय = अधि + एय
जात्येकता = जाति + एकता
ई + अ = य
नदी + अर्पण = नद्यर्पण
मही + अर्चन = मह्यर्चन
विच्छेद
नद्यन्त = नदी + अन्त
देव्यर्पण = देवी + अर्पण
ई + आ = या
मही + आधार = मह्याधार
विच्छेद
देव्यागमन = देवी + आगमन
नद्यामुख = नदी + आमुख
ई + उ = यु
वाणी + उचित = वाण्युचित
नदी + उत्पन्न = नद्युत्पन्न
विच्छेद
देव्युपासना = देवी + उपासना
वाण्युपयोगी = वाणी + उपयोगी
उ + अ = व
अनु + अय = अन्वय
मधु + अरि = मध्वरि
विच्छेद
तन्वंगी = तनु + अंगी
स्वल्प = सु + अल्प
उ + आ = वा
गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा
भानु + आगमन = भान्वागमन
उ + ई = वी
अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण
विच्छेद
अन्वीक्षा = अनु + ईक्षा
उ + ए = वे
अनु + एषण = अन्वेषण
विच्छेद
अन्वेषी = अनु + एषी
ऊ + आ = वा
वधू + आगमन = वध्वागमन
विच्छेद
भ्वादि = भू + आदि
ऋ + अ = र
मातृ + अनुमति = मात्रनुमति
ऋ + आ = रा
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
ऋ + इ = रि
मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
ऋ + उ = रु
पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश
नोट: त् + र के मेल से ‘त्र’ बनता है।
(iv) अयादि सन्धि
ए, ऐ, ओ, औ के साथ अन्य किसी स्वर के मेल पर ‘ए’ के स्थान पर ‘अय्’; ‘ऐ’ के स्थान
पर ‘आय्’; ओ के स्थान पर ‘अव्’ तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘आव्’ बन जाता है तथा मिलने वाले
स्वर की मात्रा य् तथा ‘व्’ में लग जाती है। जैसे –
ने + अन = नयन, गै + अक = गायक
पो + अन = पवन, पौ + अक = पावक
सन्धि विच्छेद करते समय ध्यान रखना है कि यदि ‘य’ के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर
हो तो उसमें ‘ए’ की मात्रा, आ का स्वर हो तो ‘ऐ’ की मात्रा तथा ‘व’ के पहले वाले वर्ण में
‘अ’ का स्वर हो तो ‘ओ’ की मात्रा तथा ‘आ’ का स्वर हो तो ‘औ’ की मात्रा लगा दें तथा ‘य’
एवं व में जो स्वर है, उससे अगला शब्द बनालें। यथा –
विलय = विले + अ, विनायक = विनै + अक
पवित्र = पो + इत्र, भावुक = भौ + उक
ए + अ = अय
विने + अ = विनय
चे + अन = चयन
ऐ + अ = आय
नै + अक = नायक
विधै + इका= विधायिका
गै + इका = गायिका
ओ + अ = अव भो + अन = भवन
ओ + इ = अवि हो + इष्य = हविष्य
ओ + ए = अवे गो + एषणा = गवेषणा
औ + अ = आव पौ + अन = पावन
औ + इ = आवि नौ + इक = नाविक
औ + उ = आवु भौ + उक = भावुक
2.
व्यंजन सन्धि
गुण संधि के उदाहरण
व्यंजन संधि के नियम
संधि की परिभाषा
व्यंजन सन्धि में व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन का मेल
तथा स्वर के साथ व्यंजन का मेल
होता है।
जैसे दिक् + अम्बर=दिगम्बर, सत्+जन=सज्जन, अभि+सेक = अभिषेक।
व्यंजन सन्धि के कतिपय नियम
1. क्, च्, ट्, त्, प्, के साथ किसी भी स्वर तथा किसी भी
वर्ग के तीसरे व चैथे वर्ण
(ग, घ, ज, झ, ड, ढ़, द, ध, ब, भ) तथा य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर ‘क्’
के स्थान पर ग्, च् के स्थान पर ज्, ट् के स्थान पर ड्,
त् के स्थान पर द्
तथा प् के स्थान
पर ब् बन जायेगा तथा यदि स्वर मिलता है तो स्वर की मात्रा
हलन्त वर्ण में लग जायेगी किन्तु
व्यंजन के मेल पर वे हलन्त ही रहेंगे। यथा –
क् के स्थान पर ग्
दिक् + अम्बर = दिगम्बर
वाक् + ईश = वागीश
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
वणिक् + वर्ग = वणिग्वर्ग
विच्छेद
प्रागैतिहासिक = प्राक् + ऐतिहासिक
दिग्विजय = दिक् + विजय
च् के स्थान पर ज् = अच् + अन्त = अजन्त
विच्छेद
अजादि = अच् + आदि
ट् के स्थान पर ड्
के षट् + आनन = षडानन
षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
विच्छेद
षड्दर्शन = षट् + दर्शन
षड्विकार = षट् + विकार
षडंग = षट् + अंग
त् का द्
सत् + आचार = सदाचार
उत् + यान = उद्यान
तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
विच्छेद
सदाशय = सत् + आशय
तदनन्तर = तत् + अनन्तर
उद्घाटन = उत् + घाटन
जगदम्बा = जगत् + अम्बा
प् का ब्
अप् + द = अब्द
विच्छेद
अब्ज = अप् + ज
(ii)क्, च्, ट्, त्, प् के साथ किसी भी नासिक वर्ण (ङ,
ञ, ज, ण, न, म) के मेल
पर क् के स्थान पर ङ्, च् के स्थान पर ज्, ट् के स्थान पर ण्,
त् के स्थान पर न्
तथा प्
के स्थान पर म् बन जायेंगे। यथा
क् का ङ्
वाक् + मय = वाङ्मय
दिक् + नाग = दिङ्नाग
विच्छेद
दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
प्राङ्मुख = प्राक् + मुख
ट् का ण्
षट् + मास = षण्मास
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
विच्छेद
षण्मुख = षट् + मुख
षाण्मासिक = षट् + मासिक
त् का न्
उत् + नति = उन्नति
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
उत् + मूलन = उन्मूलन
विच्छेद
जगन्माता = जगत् + माता
उन्नायक = उत् + नायक
विद्वन्मण्डली = विद्वत् + मण्डली
प् का म्
अप् + मय = अम्मय
(iii) म् के साथ क से म तक के किसी भी
वर्ण के मेल पर ‘म्’ के
स्थान पर मिलने
वाले वर्ण का अन्तिम नासिक वर्ण बन जायेगा। आजकल नासिक
वर्ण के स्थान पर अनुस्वार (-
) भी मान्य हो गया है। यथा
म् + क ख ग घ ङ
सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
सम् + ख्या = संख्या
सम् + गम = संगम
सम् + घर्ष = संघर्ष
विच्छेद
अलंकार = अलम् + कार
शंकर = शम् + कर
संगठन = सम् + गठन
अपवाद
सम् + करण = संस्करण
सम् + कृत = संस्कृत
सम् + कार = संस्कार
सम् + कृति = संस्कृति
म् + च, छ, ज, झ, ञ
सम् + चय = संचय
किम् + चित् = किंचित
सम् + जीवन = संजीवन
विच्छेद
किंचन = किम् + चन
मृत्युंजय = मृत्युम् + जय
संचालन = सम् + चालन
म् + ट, ठ, ड, ढ, ण
दम् + ड = दण्ड/दंड
खम् + ड = खण्ड/खंड
म् + त, थ, द, ध, न
सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
किम् + नर = किन्नर
सम् + देह = सन्देह
विच्छेद
सन्ताप/संताप = सम् + ताप
धुरन्धर = धुरम् + धर
म् + प, फ, ब, भ, म
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
सम् + भव = सम्भव/संभव
विच्छेद
विश्वम्भर = विश्वम् + भर
सम्भावना = सम् + भावना
(iv) म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण के
मेल पर ‘म्’
के
स्थान पर अनुस्वार ही लगेगा।
सम् + योग = संयोग
सम् + रचना = संरचना
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + वत् = संवत्
सम् + शय = संशय
सम् + हार = संहार
विच्छेद
संयोजना = सम् + योजना
संविधान = सम् + विधान
संसर्ग = सम् + सर्ग
संश्लेषण = सम् + श्लेषण
(v) त् या द् के साथ च या छ के मेल पर
त् या द् के स्थान पर च् बन जायेगा।
उत् + चारण = उच्चारण
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत् + छिन्न = उच्छिन्न
विच्छेद
वृहच्चयन = वृहत् + चयन
उच्छेद = उत् + छेद
विद्युच्छटा = विद्युत् + छटा
(vi) त् या द् के साथ ज या झ के मेल पर
त् या द् के स्थान पर ज् बन जायेगा
सत् + जन = सज्जन
जगत् + जीवन = जगज्जीवन
वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
विच्छेद
उज्ज्वल = उत् + ज्वल
यावज्जीवन = यावत् + जीवन
महज्झंकार = महत् + झंकार
(vii) त् या द् के साथ ट या ठ के मेल पर
त् या द् के स्थान पर ट् बन जायेगा ।
तत् + टीका = तट्टीका
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
(अपपप) त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ के मेल पर त् या द् के स्थान
पर ‘ड्’
बन जायेगा
उत् + डयन = उड्डयन
भवत् + डमरू = भवड्डमरू
(viii) त् या द् के साथ ल के मेल पर त् या द् के स्थान पर ‘ल्’ बन जायेगा।
उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
विच्छेद
उल्लंघन = उत् + लंघन
भगवल्लीन = भगवत् + लीन
उल्लेख = उत् + लेख
(ix) त् या द् के साथ ‘ह’ के मेल पर त् या द् के स्थान पर द् तथा ह के स्थान पर
ध बन जाता है जैसे
उत् + हार = उद्धार/उद्धार
उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
पद् + हति = पद्धति
विच्छेद
तद्धित = तत् + हित
उद्धरण = उत् + हरण
(x) ‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मेल पर त् या द् के स्थान पर ‘च्’ तथा ‘श’ के स्थान
पर ‘छ’ बन जाता है
उत् + श्वास = उच्छ्वास
उत् + शृंखल = उच्छृंखल
शरत् + शशि = शरच्छशि
विच्छेद
उच्छिष्ट = उत् + शिष्ट
सच्छास्त्र = सत् + शास्त्र
(xi) किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मेल पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ का आगमन
हो जाता है
आ + छादन = आच्छादन
अनु + छेद = अनुच्छेद
शाला + छादन = शालाच्छादन
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
विच्छेद
परिच्छेद = परि + छेद
विच्छेद = वि + छेद
तरुच्छाया = तरु + छाया
एकच्छत्र = एक + छत्र
(xii) अ या आ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के साथ ‘स’ के मेल पर ‘स’ के स्थान
पर ‘ष’ बन जायेगा।
वि + सम = विषम
अभि + सिक्त = अभिषिक्त
अनु + संग = अनुषंग
विच्छेद
अभिषेक = अभि + सेक
सुषुप्त = सु + सुप्त
निषेध = नि + सेध
विषाद = वि + साद
अपवाद
वि + सर्ग = विसर्ग
अनु + सार = अनुसार
वि + सर्जन = विसर्जन
वि + स्मरण = विस्मरण
(xiii) यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले
शब्द
में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर,
क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य,
र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जायेगा।
राम + अयन = रामायण
परि + नाम = परिणाम
नार + अयन = नारायण
विच्छेद
प्रसारण = प्रसार + न
उत्तरायण = उत्तर + अयन
मृण्मय = मृत् + मय
क्रीड़ांगण = क्रीड़ा + अंगन
(गअ) द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह के मेल पर द् के स्थान पर त्
बन जाता है
संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
तद् + पर = तत्पर
सद् + कार = सत्कार
3.
विसर्ग सन्धि
व्यंजन संधि के नियम
संधि की परिभाषा
विसर्ग (ः) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल पर विसर्ग सन्धि
होती है। यथा
निः + अक्षर = निरक्षर
दुः + आत्मा = दुरात्मा
निः + पाप = निष्पाप
(i) विसर्ग के साथ च या छ के मेल पर
विसर्ग के स्थान पर ‘श्’ बन
जाता है
निः + चय = निश्चय
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
निः + छल = निश्छल
विच्छेद
तपश्चर्या = तपः + चर्या
अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र
अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु
(ii)विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान
पर भी ‘श्’
बन जाता है।
दुः + शासन = दुश्शासन
यशः + शरीर = यशश्शरीर
निः + शुल्क = निश्शुल्क
विच्छेद
निश्श्वास = निः + श्वास
चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
निश्शंक = निः + शंक
(iii) विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग
के स्थान पर ‘ष्’ बन
जाता है
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
चतुः + टीका = चतुष्टीका
चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
(iv) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में
अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा
विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क,
ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग
के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।
निः + कलंक = निष्कलंक
दुः + कर = दुष्कर
आविः + कार = आविष्कार
चतुः + पथ = चतुष्पथ
निः + फल = निष्फल
विच्छेद
निष्काम = निः + काम
निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
बहिष्कार = बहिः + कार
निष्कपट = निः + कपट
ज्योतिष्कण = ज्योतिः + कण
(v) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में
अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क,
ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा यथा
अधः + पतन = अध: पतन
प्रातः + काल = प्रात: काल
अन्त: + पुर = अन्त: पुर
वय: क्रम = वय: क्रम
विच्छेद
रज: कण = रज: + कण
तप: पूत = तप: + पूत
पय: पान = पय: + पान
अन्त: करण = अन्त: + करण
अपवाद
भा: + कर = भास्कर
नम: + कार = नमस्कार
पुर: + कार = पुरस्कार
श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
बृह: + पति = बृहस्पति
पुर: + कृत = पुरस्कृत
तिर: + कार = तिरस्कार
(vi) विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।
अन्त: + तल = अन्तस्तल
नि: + ताप = निस्ताप
दु: + तर = दुस्तर
नि: + तारण = निस्तारण
विच्छेद
निस्तेज = निः + तेज
नमस्ते = नम: + ते
मनस्ताप = मन: + ताप
बहिस्थल = बहि: + थल
(vii) विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।
नि: + सन्देह = निस्सन्देह
दु: + साहस = दुस्साहस
नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न
विच्छेद
निस्संतान = नि: + संतान
दुस्साध्य = दु: + साध्य
मनस्संताप = मन: + संताप
पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण
(viii) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’
हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ
ही ‘इ’
व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’
की हो जायेगी।
नि: + रस = नीरस
नि: + रव = नीरव
नि: + रोग = नीरोग
दु: + राज = दूराज
विच्छेद
नीरज = नि: + रज
नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
दूरम्य = दु: + रम्य
(ix) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के
अतिरिक्त
अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा
अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।
अत: + एव = अतएव
मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
पय: + आदि = पयआदि
तत: + एव = ततएव
(x) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ,
ग, घ, ड॰,
´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर
विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।
मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
सर: + ज = सरोज
वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
यश: + धरा = यशोधरा
मन: + योग = मनोयोग
अध: + भाग = अधोभाग
तप: + बल = तपोबल
मन: + रंजन = मनोरंजन
विच्छेद
मनोनुकूल = मन: + अनुकूल
मनोहर = मन: + हर
तपोभूमि = तप: + भूमि
पुरोहित = पुर: + हित
यशोदा = यश: + दा
अधोवस्त्र = अध: + वस्त्र
अपवाद
पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
अन्त: + यामी = अन्तर्यामी