'हलीम' उवाच
रचनात्मक लेखन
निबन्ध लेखन (निर्धारित अंक: 5)
निबंध-लेखन करते समय छात्रोंको निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए –
1.
दिए गए विषय की एक रूपरेखा बना लें, उसी के अनुसार विषय को कुछ बिंदुओं
में बाँटें
|
2.
रूपरेखा-लेखन के समय पूर्वापर संबंध के नियम का निर्वाह किया जाए | पूर्वापर संबंध के निर्वाह का अर्थ है कि ऊपर की बात उसके ठीक नीचे की बात से जुड़ी होनी चाहिए, जिससे विषय का क्रम बना रहे |
3.
पुनरावृत्ति दोष न आए, एक मुद्दे
या बिंदु का वर्णन करने के बाद दोबारा आगे उसका ज़िक्र न करें |
4.
अपनी बात को स्पष्ट रूप से कहें. न तो बात को अधूरा छोड़ें और न ही अनावश्यक विस्तार दें.
5.
भाषा सरल, सहज और बोधगम्य हो. भाषा को स्पष्ट बनाने के लिए
यथासम्भव छोटे वाक्यों का प्रयोग करें. बड़े और लम्बे वाक्यों में पद-क्रम बिगड़ने और
वाक्य-रचना ठीक न हो पाने की गुंजाइश रहती है. इससे वाक्य अटपटा और निरर्थक हो जाता
है. |
6.
बहुत अधिक स्थानीय (लोकल) शब्दों या प्रसंगों का प्रयोग न करें. अपनी भाषा के आदर्श स्तर से ही आप अपने निबंध को स्तरीय और सुन्दर बना सकते हैं.
7.
उन्हीं तथ्यों को प्रस्तुत करें जो सत्य एवं प्रासंगिक हों. आपकी बातों में झूठ, बनावटीपन या अधूरा ज्ञान नहीं झलकना चाहिए.
8.
निबंध का प्रारम्भ किसी कहावत, उक्ति, सूक्ति आदि से किया जाए |
9.
विषय को प्रामाणिक बनाने के उद्देश्य से हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी,उर्दू की सूक्तियाँ, मुहावरे एवं उद्धरण भी बीच-बीच में देते रहना चाहिए |
10.
भूमिका/प्रस्तावना में विषय का सामान्य परिचय तथा उपसंहार में विषय का निष्कर्ष होना चाहिए. उपसंहार में अपनी बात का मूल
तत्व या सारांश लिखें |
पहला चरण : सबसे पहले जिस विषय को आपने पसंद किया है उस पर अपने विचारों को दिमाग में लाएं, उस पर खूब सोचें। अपने दोस्तों से
उस विषय पर
चर्चा करें। आप
उस विषय पर
जितना जानते हैं
उसे एक कागज
पर उतार लें।
इसका फायदा यह
होगा कि दिमाग
में एकत्र जानकारी कागज
पर आने से
दिमाग में अन्य
जानकारी के लिए
जगह बनेगी। जब आप कागज पर अपने विचार लिख लें तब नई किताबों, अखबारों और इंटरनेट से और अधिक जानकारी एकत्र करें।
दूसरा चरण : सारी जानकारी एकत्र हो जाए तब उसे क्रमवार प्रस्तुत करना जरूरी है। जानकारी होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है जानकारी की आकर्षक प्रस्तुति। किसी बात को कहने का सुंदर अंदाज ही आपको सबसे अलग और खास बनाता है। निबंध का एक स्वरूप, ढांचा या सरल शब्दों में कहें तो खाका तैयार करें। सबसे पहले क्या आएगा, उसके बाद और बीच में क्या आएगा और निबंध का अंत कैसे होगा।
तीसरा चरण: निबंध के लिए विषय को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
तीसरा चरण: निबंध के लिए विषय को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
भूमिका या
प्रस्तावना:- इस भाग में विषय का परिचय दिया जाता है. प्रस्तावना
अत्यंत आकर्षक, सारगर्भित और प्रभावपूर्ण होना चाहिए।
विषय विस्तार या विषय का महत्व:- इसमें विषय का महत्व, विषय से संबंधित आवश्यक पहलू, आंकड़े, सूचना आदि शामिल होंगे. विषय
को विचार की क्रमिक इकाइयों में विभाजित करें. इन विचार बिंदुओं को श्रृंखलाबद्ध तथा
तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करें. किसी भी नए तथ्य, विचार अथवा तर्क का प्रारम्भ नए
अनुच्छेद से किया जाना चाहिए।
पक्ष और विपक्ष में विचार:- यदि निबंध में किसी विषय के दो पहलू हैं तो उसके पक्ष और विपक्ष में विचार
दिए जाते हैं, परन्तु यदि निबंध के केन्द्र में कोई वस्तु है तो उपयोगिता, लाभ-हानि, फायदे-नुकसान आदि लिखे जा सकते हैं। अगर निबंध किसी महापुरुष पर लिखा जा रहा है उनके बचपन, स्वभाव, महान कार्य, देश व
समाज को योगदान, उनके विचार, प्रासंगिकता और अंत में उनके प्रति आपके विचार दिए जा सकते हैं।
निष्कर्ष या उपसंहार:- निबंध के अंत को निष्कर्ष या उपसंहार कहते हैं। यहां आकर आप विषय को इस तरह समेटते हैं कि वह संपूर्ण लगे. उपसंहार
निबंध की चरमावस्था का द्योतक होता है. इसमें लेखक कभी प्रतिपादित विषय का सार दे सकता
है, कभी वह विषय की स्थापना से सम्बंधित अंतिम तर्क को प्रस्तुत करके निबंध को समाप्त
कर सकता है और कभी अपने मंतव्य अथवा निष्कर्ष को प्रामाणिक ढंग से कहने के लिए किसी
काव्यांश को उद्धृत करते हुए निबंध का समापन कर सकता है ।
सबसे अहम शुरुआत है:
1. कहते हैं 'फर्स्ट इंप्रेशन इज लास्ट इंप्रेशन'। पहली बार जो प्रभाव पड़ता है वह आखिर तक रहता है। आपको निबंध लिखना है तो महापुरुषों के अनमोल वचन से लेकर कविताएं, शेरो-शायरी, सूक्तियां, चुटकुले, प्रेरक प्रसंग, नवीनतम आंकड़े कंठस्थ होने चाहिए। अपनी बात को कहने का आकर्षक अंदाज अक्सर परीक्षक या निर्णायक को लुभाता है।
2. विषय से संबंधित सारगर्भित कहावतों या मुहावरों से भी निबंध का आरंभ किया जा सकता है। विषय को क्रमवार विस्तार देने में ना तो जल्दबाजी करें ना ही देर। निबंध के हर भाग में पर्याप्त जानकारी दें। हर अगला पैरा एक नई जानकारी लेकर आएगा तो पढ़ने वाले की उसमें दिलचस्पी बनी रहेगी।
3. अनावश्यक विस्तार जहां पढ़ने वाले को चिढ़ा सकता है वहीं अति संक्षेप आपकी अल्प जानकारी का संदेश देगा। अत: शब्द सीमा का विशेष ध्यान रखें। दी गई शब्द सीमा को तोड़ना भी निबंध लेखन की दृष्टि से गलत है। अगर शब्दसीमा ना दी गई हो तो हर प्वाइंट में 40 से 60 शब्दों तक अपनी बात कह देनी चाहिए।
अंत भला तो सब भला: जिस तरह आरंभ महत्वपूर्ण है उसी तरह अंत में कहीं गई कोई चुटीली या रोचक बात का भी खासा असर होता है। विषय से संबंधित शायरी या कविता हो तो क्या बात है। अंत यानी निष्कर्ष/उपसंहार में प्रभावशाली बात कहना अनिवार्य है। सारे निबंध का सार उसमें आ जाना चाहिए।
अंत भला तो सब भला: जिस तरह आरंभ महत्वपूर्ण है उसी तरह अंत में कहीं गई कोई चुटीली या रोचक बात का भी खासा असर होता है। विषय से संबंधित शायरी या कविता हो तो क्या बात है। अंत यानी निष्कर्ष/उपसंहार में प्रभावशाली बात कहना अनिवार्य है। सारे निबंध का सार उसमें आ जाना चाहिए।
निबंध हेतु नमूना रूपरेखा :
विज्ञान
; वरदान या अभिशाप
भूमिका/ प्रस्तावना
विज्ञान का अर्थ
विज्ञान वरदान है –
·
शिक्षा के क्षेत्र में
·
चिकित्सा के क्षेत्र में
·
मनोरंजन के क्षेत्र में
·
कृषि के क्षेत्र में
·
यातायात के क्षेत्र में
विज्ञान अभिशाप है –
·
शिक्षा के क्षेत्र में
·
चिकित्सा के क्षेत्र में
·
मनोरंजन के क्षेत्र में
·
कृषि के क्षेत्र में
·
यातायात के क्षेत्र में
विज्ञान के प्रति हमारे उत्तरदायित्व
उपसंहार
विशेष: उक्त रूपरेखा को आवश्यकता के अनुरूप विभिन्न क्षेत्रों को जोड़कर बढ़ाया जा सकता है |
आलेख
आलेख-लेखन हेतु महत्त्वपूर्ण बातें:-
किसी विषय पर सर्वांगपूर्ण
जानकारी जो तथ्यात्मक,
विश्लेषणात्मक अथवा विचारात्मक
हो आलेख कहलाती
है |
आलेख का आकार संक्षिप्त
होता है. इसे हम निबंध का संक्षिप्त रूप ही कह सकते हैं. आलेख और निबंध
में बस यही मूल अंतर होता है कि आलेख में निजी विचार होते हैं जबकि निबंध में ऐसा नहीं
होता |
इसमें विचारों
और तथ्यों की स्पष्टता
रहती है, ये विचार
क्रमबद्ध रूप में होने चाहिए. कोई नया विचार या बात
पिछली बात या विचार से निकलता हुआ ही लगे |
विचार या तथ्य की पुनरावृत्ति
न हो |
5.
आलेख की शैली विवेचन
,विश्लेषण अथवा विचार-प्रधान
हो सकती है. परन्तु विवेचना या विश्लेषण करते हुए
आपकी बात में विरोधाभास नहीं होना चाहिए |
6.
ज्वलंत मुद्दों,
समस्याओं , अवसरों, चरित्र
पर आलेख लिखे जा सकते हैं |
7.
आलेख गंभीर
अध्ययन पर आधारित
प्रामाणिक रचना होती है, इसलिए भूलकर भी हास्य या व्यंग्य उत्पन्न
करने वाली बात न लिखें |
8.
विषय से सम्बंधित आंकणों, प्रमाणों आदि का संकलित प्रयोग आलेख में किया जाना चाहिए.
9.
आलेख की भाषा सरल व रोचक होनी चाहिए. आलेख ऐसा मनोरंजक हो कि पाठक उसकी पहली पंक्ति को पढ़कर ही बिना रुके पूरा आलेख पढ़ जाये.
10.
आलेख का प्रारम्भ भी निबंध की भांति किसी भूमिका से किया जा सकता है, परन्तु यह भूमिका 2-3 वाक्यों से अधिक न हो. किसी ज्वलंत (सामयिक) विषय पर आलेख लिखते समय उस मुद्दे की वर्तमान स्थिति से आलेख का प्रारम्भ करें.
फीचर
लेखन ( निर्धारित
अंक:5
)
फीचर को अंग्रेजी शब्द फीचर
के पर्याय के तौर पर फीचर कहा जाता है। हिन्दी में फीचर के लिये रुपक शब्द का
प्रयोग किया जाता है लेकिन फीचर के लिये हिन्दी में प्रायः फीचर शब्द का ही प्रयोग
होता है। समकालीन
घटना तथा किसी
भी क्षेत्र विशेष
की विशिष्ट जानकारी के सचित्र
तथा मोहक विवरण
को फीचर कहते
हैं |फीचर मनोरंजक
ढंग से तथ्यों
को प्रस्तुत करने
की कला है
| वस्तुत: फीचर मनोरंजन
की उंगली थाम
कर जानकारी परोसता
है| इस प्रकार
मानवीय रूचि के
विषयों के साथ
सीमित समाचार जब
चटपटा लेख बन
जाता है तो
वह फीचर कहा
जाता है | अर्थात-
“ज्ञान + मनोरंजन = फीचर” |
फीचर का सामान्य अर्थ होता
है – किसी प्रकरण संबंधी विषय पर प्रकाशित आलेख है। लेकिन यह लेख संपादकीय पृष्ठ
पर प्रकाशित होने वाले विवेचनात्मक लेखों की तरह समीक्षात्मक लेख नही होता है। फीचर समाचार पत्रों में
प्रकाशित होने वाली किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव–जन्तु, तीज–त्योहार, दिन,
स्थान, प्रकृति–परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित वह विशिष्ट आलेख
होता है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में
प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात फीचर किसी रोचक विषय पर मनोरंजक ढंग से लिखा गया
विशिष्ट आलेख होता है। फीचर
में अतीत, वर्तमान
और भविष्य की
प्रेरणा होती है
| फीचर लेखक पाठक
को वर्तमान
दशा से जोड़ता है, अतीत
में ले जाता
है और भविष्य
के सपने
भी बुनता है
| फीचर लेखन
की शैली विशिष्ट
होती है | शैली
की यह भिन्नता
ही फीचर को
समाचार, आलेख या
रिपोर्ट से अलग
श्रेणी में ला
कर खडा करती
है |
फीचर लेखन
को अधिक स्पष्ट
रूप से समझने
के लिए निम्न
बातों का ध्यान
रखें –
1.
फीचर का कोई न कोई उद्देश्य
अवश्य होना चाहिए.
2.
फीचर की कहानी पाठकों के अनुकूल होनी चाहिए.
3.
फीचर की कहानी पात्रों के
माध्यम से कहनी चाहिए.
4.
फीचर को
शुरु से लेकर अंत तक मनोरंजक शैली में लिखा जाना चाहिये। मनोरंजन होने के साथ साथ फीचर में सूचना भी होनी चाहिए.
5.
फीचर लिखने का कोई निश्चित
ढाँचा नहीं होता.
6.
फीचर तथ्यों
की खोज के साथ मार्गदर्शन
और मनोरंजन की दुनिया
भी प्रस्तुत करता है | घटना के परिवेश,
विविध प्रतिक्रियाएँ व उनके
दूरगामी परिणाम
भी फीचर में रहा करते हैं |
7.
प्रारम्भ आकर्षक एवं उत्सुकता
पैदा करने वाला होना चाहिए.
8.
फीचर को
ज्ञानवर्धक, उत्तेजक और परिवर्तनसूचक होना चाहिये।
9.
फीचर के विषय से जुड़े लोगों
(पात्रों) की मौजूदगी ज़रूरी है.
10.
फीचर में लेखक की किसी विषय से संबंधित
निजी अनुभवों की अभिव्यक्ति होनी चाहिये।
11.
फीचर से सम्बंधित लोगों के
वक्तव्य काफी प्रभावी होने चाहिए.
12. फीचर में अतिरिक्त
साज-सज्जा, तथ्यों
और कल्पना का रोचक मिश्रण
होना चाहिए | फीचर लेखक किसी घटना की सत्यता या तथ्यता को अपनी
कल्पना का पुट देकर फीचर में तब्दील करता है।
13.
फीचर को
सीधा सपाट न होकर चित्रात्मक होना चाहिये।
14.
फीचर की
भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होने के साथ–साथ कलात्मक और बिंबात्मक होनी चाहिये। फीचर की भाषा आम पाठक की होनी चाहिए तथा
उसमें प्रवाह एवं ताज़गी रहनी चाहिए.
फीचर लेखन की प्रक्रिया:-
1.
विषय का चयन:- किसी भी फीचर की सफलता
इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितना रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला
है। इसलिये फीचर का विषय समयानुकूल, प्रासंगिक और समसामयिक होना चाहिये। अर्थात
फीचर का विषय ऐसा होना चाहिये जो लोक रुचि का हो, लोक – मानव को छुए, पाठकों में
जिज्ञासा जगाये और कोई नई जानकारी दे।
2.
सामग्री का संकलन:- फीचर का विषय तय करने
के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण है विषय संबंधी सामग्री का संकलन। उचित जानकारी और
अनुभव के अभाव में किसी विषय पर लिखा गया फीचर उबाऊ हो सकता है। विषय से संबंधित
उपलब्ध पुस्तकों, पत्र – पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा फीचर लेखक को
बहुत सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों में जाकर जुटानी पड़ सकती है।
3.
फीचर योजना:- फीचर से संबंधित
पर्याप्त जानकारी जुटा लेने के बाद फीचर लेखक को फीचर लिखने से पहले फीचर का एक
योजनाबद्ध खाका बनाना चाहिये।
फीचर लेखन की संरचना:-
1.
विषय प्रतिपादन या भूमिका:- फीचर लेखन की संरचना के इस भाग में फीचर के मुख्य भाग में
व्याख्यायित करने वाले विषय का संक्षिप्त परिचय या सार दिया जाता है। इस
संक्षिप्त परिचय या सार की कई प्रकार से शुरुआत की जा सकती है। किसी प्रसिद्ध
कहावत या उक्ति के साथ, विषय के केन्द्रीय पहलू का चित्रात्मक वर्णन करके, घटना
की नाटकीय प्रस्तुति करके, विषय से संबंधित कुछ रोचक सवाल पूछकर। भूमिका का आरेभ किसी भी प्रकार से
किया जाये इसकी शैली रोचक होनी चाहिये मुख्य विष्य का परिचय इस तरह देना चाहिये
कि वह पूर्ण भी लगे लेकिन उसमें ऐसा कुछ छूट जाये जिसे जानने के लिये पाठक पूरा
फीचर पढ़ने को बाध्य हो जाये।
2.
विषय वस्तु की व्याख्या:- फीचर की भूमिका के बाद फीचर के विषय या मूल संवेदना की व्याख्या की
जाती है। इस चरण में फीचर के मुख्य विषय के सभी पहलुओं को अलग – अलग व्याख्यायित
किया जाना चाहिये। लेकिन सभी पहलुओं की प्रस्तुति में एक प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष क्रमबद्धता होनी चाहिये। फीचर को दिलचस्प बनाने के लिये फीचर में
मार्मिकता, कलात्मकता, जिज्ञासा, विश्वसनीयता, उत्तेजना, नाटकीयता आदि का समावेश
करना चाहिये।
3.
निष्कर्ष:- फीचर संरचना के इस चरण
में व्याख्यायित मुख्य विषय की समीक्षा की जाती है। इस भाग में फीचर लेखक अपने
ऴिषय को संक्षिप्त रुप में प्रस्तुत कर पाठकों की समस्त जिज्ञासाओं को समाप्त
करते हुये फीचर को समाप्त करता है। साथ ही वह कुछ सवालों को पाठकों के लिये अनुत्तरित
भी छोड़ सकता है। और कुछ नये विचार सूत्र पाठकों से सामने रख सकता है जिससे पाठक
उन पर विचार करने को बाध्य हो सके।
फीचर
तथा समाचार में अंतर:-
1.
फीचर-लेखन में उल्टा पिरामिड शैली
का प्रयोग नहीं
होता. इसकी लेखन-शैली कथात्मक-शैली
होती है.
2.
फीचर
की भाषा सरल,
रूपात्मक, आकर्षक व मन को
छू लेने वाली
होतीहै, जबकि समाचार की
भाषा सपाटबयानी होती
है.
3.
फीचर
में शब्दों की
कोई अधिकतम सीमा
नहीं होती. फीचर
आम तौर पर
250 से
2000 शब्दों तक
के होते हैं,
जबकि समाचार शब्द-सीमा में बंधे
होते हैं.
4.
फीचर
का विषय कुछ
भी हो सकता
है, समाचार का
नहीं.
|
5.
समाचार साधारण
जनभाषा में प्रस्तुत
होता है और फीचर एक विशेष
वर्ग व विचारधारा
पर केंद्रित रहते हुए विशिष्ट शैली में लिखा जाता है |
6.
एक समाचार
हर एक पत्र में एक ही स्वरुप
में रहता है परन्तु
एक ही विषय पर फीचर अलग-अलग पत्रोंमें
अलग-अलग प्रस्तुति
लिये होते हैं | फीचर के साथ लेखक का नाम रहता है |
पत्र-लेखन (निर्धारित अंक: ५)
विचारों, भावों, संदेशों एवं सूचनाओं के संप्रेषण के लिए पत्र सहज, सरल तथा पारंपरिक माध्यम है। परीक्षाओं में शिकायती-पत्र, आवेदन-पत्र तथा संपादक के नाम पत्र पूछे जाते हैं। इन पत्रों को लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए:-
पत्र-लेखन के अंग:-
१.
पता और दिनांक- पत्र के ऊपर बाईं ओर प्रेषक का पता व दिनांक लिखा जाता है (छात्र पते के लिए परीक्षा-भवन ही लिखें)
२.
संबोधन और पता– जिसको पत्र लिखा जारहा है उसको यथानुरूप संबोधित किया जाता है, औपचारिक पत्रों में पद-नाम और कार्यालयी पता रहता है |
३.
विषय– पत्र के कथ्य का संक्षिप्त रूप, जिसे पढ़ कर पत्र की सामग्री का संकेत मिल जाता है।
४.
पत्र की सामग्री – यह पत्र का मूल विषय है, इसे सारगर्भित और विषय के स्पष्टीकरण के साथ लिखा जाए |
५.
पत्र की समाप्ति – इसमें धन्यवाद, आभार सहित अथवा साभार जैसे शब्द लिख कर लेखक अपना नाम लिखता है | परन्तु छात्र पत्र में कहीं अपना अभिज्ञान (नाम-पता) न दें | औपचारिक पत्रों में विषयानुरूप ही अपनी बात कहें | द्वि-अर्थक और बोझिल शब्दावली से बचें |
श्रेष्ठ पत्र की
विशेषताएँ:-
1. पत्र निष्कपट भाव से बातचीत शैली में लिखा जाना चाहिए. पत्र को पढ़कर ऐसा लगे
मानो हम लेखक के साथ बातचीत कर रहे हों.
2. पत्र में किसी प्रकार का आडम्बर नहीं होना चाहिए.
3. पत्र में शिष्टाचार का सावधानी के साथ प्रयोग होना चाहिए. पत्र में सम्बोधित
व्यक्ति के प्रति सम्मान का भाव व्यक्त होना चाहिए.
4.
पत्र की भाषा शुद्ध, स्पष्ट, सरल, विशिष्ट, स्वाभाविक, विषयानुरूप तथा प्रभावकारी होनी चाहिए।
5. होनी चाहिए. पत्र स्थाई संपत्ति होते हैं, इसलिए किसी भावावेश में लिखते समय
भी हमें अनुचित या अपशब्दों का प्रयोग न करके अपनी प्रतिक्रिया को संतुलित शब्दों में
रखना चाहिए.
6. पत्र में अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए. व्यर्थ की बातें पत्र के प्रभाव
को कम कर देती हैं.
7. पत्र में पता, तिथि, सम्बोधन, अभिवादन, समाप्ति आदि सुस्पष्ट ढंग से होना चाहिए.
8. एक श्रेष्ठ पत्र की सफलता इसमें है कि हम वह प्रभाव उत्पन्न कर सकें, जो हम करना
चाहते हैं. पत्र-लेखन में हस्तलेख का भी ध्यान रखना आवश्यक है. हमें सुन्दर शब्दों
में पत्र लिखना चाहिए, जिससे पत्र प्राप्तकर्ता को उसे पढ़ने में रुचि जगे.
9. औपचारिक पत्रो में किसी प्रकार की भावनाओं, अनुभूतियों को व्यक्त करना उचित नहीं
होता.
10. पत्र की विषय-वस्तु अधिक होने पर उसे एक से अधिक (2 या 3) पैराग्राफ में बाँटना
श्रेयस्कर रहता है. परन्तु कोई पैराग्राफ न तो 100 शब्दों से अधिक हो और न ही 30 शब्दों
से कम. दो या तीन पैरा होने पर 50-80 शब्दों के पैरा बनायें.
11. किसी समस्या का उल्लेख करते समय उससे जुड़े मानवीय पहलुओं को लिखें परन्तु उसे
निजी भावनाओं से न जोड़ें.
पत्र का नमूना :
अस्पताल के प्रबंधन पर संतोष व्यक्त करते हुए चिकित्सा-अधीक्षक को पत्र लिखिए |
परीक्षा-भवन,
दिनांक: -----
मानार्थ/सेवार्थ/सेवा में
चिकित्सा-अधीक्षक,
कोरोनेशन अस्पताल,
देहरादून |
विषय : अस्पताल के प्रबंधन पर संतोष व्यक्त करने के संदर्भ में -
महोदय/माननीय/मान्यवर,
इस पत्र के माध्यम से मैं आपके चिकित्सालय के सुप्रबंधन से प्रभावित हो कर आपको धन्यवाद दे रहा हूँ | गत सप्ताह मेरे पिता जी हृदय-आघात से पीड़ित होकर आपके यहाँ दाखिल हुए थे | आपके चिकित्सकों और सहयोगी स्टाफ ने जिस तत्परता, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से उनकी देखभाल तथा चिकित्सा की उससे हम सभी परिवारी जन संतुष्ट हैं | हमारा विश्वास बढ़ा है | आपके चिकित्सालय का अनुशासन प्रशंसनीय है |
आशा है जब हम पुनर्परीक्षण हेतु आएँगे, तब भी वैसी ही सुव्यवस्था मिलेगी |
आभार सहित/साभार !
भवदीय
क ख ग
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपनी प्रतिक्रिया दें।