'हलीम' उवाच
कहने को तो हम इश्वर की सर्वश्रेष्ट कृति हैं, हमें उसने सबसे शक्तिशाली बनाया है. हमें बुद्धि दी, समझ दी, पर मै कभी - कभी सोचने पर विवश हो जाता हूँ की क्या वास्तव में हम सर्वश्रेष्ट कृति हैं इश्वर की या सब से घटिया?
आज का इंसान इतना ज्यादा इस दुनिया में खो गया है की उसे लगता है की जो कुछ है , इस दुनिया में ही है. शरीर ख़त्म - सब ख़त्म. पाप पुण्य को वो बेकार की बात मानता है, सही गलत को वो पुरानी पीढ़ी की सोच कहता है, नैतिकता को वो ढकोसला बताता है, स्वर्ग - नरक को वो बकवास समझता है – या अगर मानता भी है तो उसे उस पर विश्वास नहीं है, वरना अगर उस पर विश्वास होता तो कम से कम बुरे कर्म करने के पहले …….……
आज जब के श्री अन्ना हजारे के सौजन्य से (या की मीडिया के ) भर्ष्टाचार सबसे हॉट टोपिक है, हर कोई भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोल रहा है पर क्या आपने सोचा है की भ्रष्टाचारी क्या किसी दुसरे गृह से आते हैं? वो भी हमारे ही जैसे लोग होतें हैं, हमारी ही तरह सोचते हैं और कर्म करते हैं , हम में से ही तो होते हैं. आज हम अपने आराम के लिए रिश्वत देना या लेना गलत नहीं समझते हैं. कौन लाइन में लगे यार, चलो कुछ पैसा क्लर्क को देकर ……………, कौन महीनो प्रतीक्षा करे भाई , कुछ पैसा बड़े बाबु को देकर ………., ये सब हम जैसे लोग ही तो करते हैं , कहीं मजबूरी में तो कभी अपने आराम के लिए.
आज का इंसान इतना अधिक संवेदनहीन हो गया है की उसे कुछ भी विचलित नहीं करता है , अगर वो उसके साथ ना हो रहा हो. उसे किसी के साथ हो रहे अत्याचार से कोई खास फर्क नहीं पड़ता, किसी के साथ हुई बलात्कार की घटना को वो केवल मज़े के लिए पढता है या सुनता /देखता है. अगर उसके सामने कोई किसी को छेड़ रहा हो तो वो कन्नी काट कर निकल जाता है की कौन ……..…?, चाँद लफंगे टाइप के लोग आकर उसके सामने गुंडागर्दी करते हैं पर वो कुछ नहीं करता की, यार कौन लफड़े में पड़े ….….., हम किसी लफड़े में पड़ना नहीं चाहते क्योंकि हमको कोई थोड़ी ना …. ….., बस यही सोच हमें नपुंसक बना देती है, हम बस चुप रहते हैं और जब खुद पर पड़ती है तो दूसरो की ओर देखते है की कोई हमारी सहायता करे और तब – दुसरे भी वैसे ही ……………….,
आज का इंसान इतना गिर गया है की वो अब हैवान बन गया है वरना 5-6 साल की बच्ची के साथ या 70 साल की वृद्धा के साथ ….…. , और तो और अपनी ही बहन / बेटी / बहुओं के साथ …………, क्या सच में इंसान कहलाने के लायक है हम ?
दोष किसे दें इस बात का ? इस बदलते हुए परिवेश को , जहाँ नंगापन , बेशर्मी , बेहूदगी को फैशन समझा जाता है , जहाँ फिल्म और टीवी पर सेक्स परोसा जा रहा है , जहाँ हमारे मासूमों का बचपन धीरे धीरे ………., कौन दोषी है इस सब के लिए?
मै , आप , या हम सब?