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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

'हलीम' उवाच
योनि और एक जोड़ा स्तन भर नहीं है नारी!
महिलाओं के प्रति अपराध वाली स्थिति बनी कैसे?हमारे मीडिया, सिनेमा, टी.वी. बाज़ार, उद्योग और यहाँ तक कि शिक्षण संस्थानों ने उसे एक 'वस्तु' बना रखा है जिसे दिखाकर अपना व्यापार बढ़ाया जा सकता है, लोगों को आकर्षित किया जा सकता है। और खुद महिलाओं में खुद को अच्छा दिखाने, सजने की होड़ मच गई।दिखाने का चलन ऐसा बढा कि बात कपड़ों तक आ गई। शादी से पहले पुरूष संसर्ग फैशन बन गया। आज ऐसी लड़कियाँ गिनती की हैं जिनके पास BOYFRIENDS नहीं हैं। इस सबका असर तो मस्तिष्क और सोच पर पड़ना ही था क्योंकि आदमी की फितरत ही ऐसी है कि अच्छी बात भले देर में सीखे परHARMFULL चीज़ें जल्दी सीख लेता है।

और MENTALITY की बात तो ऐसी है कि यह कोई अंडरवियर नहीं कि एक उतारा दूसरा पहन लिया। ज़माने लग जाते हैं इस काम में। आप देखिए क्या आज़ादी के 65 सालों में हम लड़की को लड़के से कम समझने, छुआछूत मानने, विधवा को अपशकुन मानने,
अंग्रजों के पिछलग्गू बनने, गरीब को छोटा और अमीर को बड़ा समझने की सोच को बदल पाए हैं? ईमानदारी से सोचो। अरे हम जिन पश्चिमी देशों की नकल करते हैं ये बातें तो वहाँ बिलकुल नहीं होतीं वहाँ सब बराबर हैं। वहाँ इतने बलात्कार नहीं होते क्योंकि वहाँ की जलवायु ठंडी है, वो लोग हमारी तरह तामसी और मसालेदार भोजन नहीं करते। फिर हम वो सारे COSTOMS कैसे अपना सकते हैं। हमें अपनी संस्कृति(जो हमारी पहचान थी) को भूलने की सजा मिल रही है, हमने मर्यादाएँ तोड़ दी हैं जिन्हें बनाने इस बार कोई राम नहीं आने वाला। हमें(अभिभावकों को भी)सभ्यता और आधुनिकता को परिभाषित करना होगा तभी इन सारी बातों का अर्थ पूर्ण होगा।