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बुधवार, 29 दिसंबर 2010

यह कैसी आजादी

'हलीम' उवाच

छत्तीसगढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता विनायक सेन पर जिस तरह राजद्रोह लगाकर सीँखचोँ मेँ कैद कर दिया गया है वह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है।इस तरह तो हर आदर्श पत्रकारिता और हर सामाजिक संगठन जो सच सामने लाना चाहते हैँ और अन्याय के खिलाफ लड़ते हैँ वे भी इसकी जद मेँ आ जाते हैँ।हाय रे अपने ही देश मेँ सच बोलने का हक नहीँ है।ये कैसा लोकतंत्र है?इस सरकार ने तो न्याय, प्रजा, आचार, अर्थव्यवस्था सब का बलात्कार कर दिया।

शनिवार, 13 नवंबर 2010

बाढ़ के बहाने

'हलीम' उवाच

उफनाया नदियोँ का सीना, गाँवोँ का सब सुख, घर छीना।

ऐसी हुई तबाही मच गया हाहाकार, A. C. कमरोँ मेँ विचार करती सरकार।

भेजे राशन सेना पहुँचाए, चंद घूँट प्यासोँ को पिलाए।

संकट मेँ जनता चिल्लाए सरकार निकम्मी, इंतजाम न करे दिखाए ढोँग अधर्मी।

इक सपना था अटल का बोले नदियाँ जोड़ो, बाढ़ का पानी सूखे की धरती पर मोड़ो।

हो न सका साकार तभी तो है ये सूरत, देर भले लगती पर बनती सुंदर मूरत।

ज्ञान चछु को खोल अरे ओ अंधे मानव, मार जो भीतर बैठा तेरे स्वार्थ का दानव।

मत छोटी-छोटी सुविधाओँ मेँ उलझ यूँ पगले, दूर की कौड़ी सोच देश की हालत बदले।

कितना अपना पैसा अकाल बाढ़ खा जाती, यह पूँजी क्या तेरे हित मेँ काम न आती?

आवाज़ उठा अपनी खुद को दे इतनी तू ताकत, यह तंत्र विवश हो सुने तेरे आगे हो नतमस्तक।

सौ करोड़ की जनता पर कोई क्यूँ रौब जमाए, सब मिल जाओ चुनो उसे जो अपनी न चलाए।
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

शुभकामना संदेश

शुभकामना संदेश

सब दीप जलाते चौखट पर, पर मन का दीप जलाओ तुम। अँधियारा अंतर का मेटो, इस जगती को चमकाओ तुम। सब पाप मिटे अंधेर मिटे, मानवता पर संदेह मिटे। प्रेम त्याग करुणा भरकर, इक सच का दीप जलाओ तुम।
प्रकाश उत्सव की हृदय से शुभकामनाएँ।
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'
e-mail- haleem.nishedh@gmail.com
blog- www.haleem-haleem.blogspot.com

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

इन्तिहाँ हो गई.......

"कानपुर मेँ कक्षा 6 की एक मासूम बच्ची के साथ उस के स्कूल मेँ ही
बलात्कार हुआ। वह भी स्कूल के प्रबंधक के बेटे के द्वारा। विद्या का
मंदिर माने जाने वाले पवित्र स्थान मेँ वहशीपन की सारी सीमाएँ टूट गईँ।
बच्ची खून से लथपथ होकर चिल्लाती रही और दरिँदा उसे भोगता रहा। इतने पर
भी उसकी हवस शांत नहीं हुई तो इलेक्ट्रिक ड्रिल से उसके यौनांगोँ को
क्षत-विक्षत कर दिया। 11 साल की उस मासूम के दर्द की भीषणता का अंदाजा आप
इसी बात हैँ कि उसके उत्सर्जन अंगोँ के साथ प्रजनन अंग तक क्षतिग्रस्त हो
गए जिसे देखकर डाक्टर तक दहशत मेँ आ गए। इतना सब होने के बाद खून से लथपथ
बच्ची को उसकी कक्षा मेँ छोड़ दिया गया जहाँ से किसी ने उसे उसके घर पर
छोड़ा। जब पड़ोसियोँ ने उसकी माँ जो किसी शापिंग माल मेँ मामूली नौकरी करती
थी को सूचित किया। वे लोग उसे लेकर अस्पताल पहुँचे जहाँ उसने दम तोड़
दिया।"

      "क्या सोच रहे हैँ आप, यही न कि ऐसे बर्बर पापी के साथ क्या सलूक
किया जाना चाहिए? पर ये त्रासद प्रकरण अभी खत्म नहीँ हुआ है। हमारी
विलक्षण साहसी पुलिस की भूमिका देखिए। जिला प्रशासन ने पोस्टमार्टम के
लिए 4 डाक्टरोँ का एक विशेष पैनल बनाया ताकि निष्पक्ष जाँच हो सके। तब
जिस हत्यारे की उपर की चमड़ी उधेड़कर उसे सीँखचोँ मेँ घुसेड़ देना चाहिए था
उससे मोटी रकम लेकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदलवाने के लिए डाक्टरोँ को
रिश्वत देने पहुँच गए। जब बात नहीँ बनी तो उन्हेँ धमकाया भी पर डाक्टरोँ
ने सही रिपोर्ट दी। इस पर रिपोर्ट की व्याख्या शुरू कर दी कि जाँच मेँ
सीमन नहीँ पाया गया। अरे इतना खून बह जाने के बाद सीमन क्या रखा रहेगा?
कहने लगे कि बच्ची पहले से गर्भवती थी। जरा सोचिए.....।
        पुलिस की मनमानी यहीँ समाप्त नहीँ हुई। प्रदर्शन कर रहे
अभिभावकोँ व परिजनोँ की पिटाई कर दी। यहाँ तक कि उस बच्ची की माँ को भी
लाठियोँ से बुरी तरह पीटा। और देखिए इस प्रकरण को सुर्खियोँ मेँ लाने
वाले अखबार हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक व पत्रकारोँ को झूठा केस लगा
देने की धमकी दी। फिर भी खबरेँ नहीँ थमीँ तो कार्यालय मेँ तोड़फोड़ कर
कर्मचारियोँ की पिटाई कर दी जिसकी पूरे मीडिया जगत ने निँदा की और विरोध
किया। तब समाज के कुछ सक्षम तथा जिम्मेदार लोगोँ के आगे आने तथा जनाक्रोश
को देखते हुए दबाव मेँ आकर अपराधी को गिरफ्तार किया।"

         क्या इस पूरे प्रकरण से नहीँ लगता कि पुलिस का नंगनाच इन दिनोँ
ज्यादा बढ़ गया है? यह अकेला कांड नहीँ है, ऐसे जाने कितने प्रकरण हैँ जो
जनता जानती है। कितनी फर्जी मुठभेड़ें दिखाकर अपनी बहादुरी का दम भरने
वाली पुलिस ने यह मामला इसलिए दबाने की कोशिश की क्योँकि अपराधी से रकम
का नियमित बंदोबस्त था। कोई मरे कोई मल्हार गाए। क्या इन पुलिसियोँ के घर
मेँ बेटियाँ नहीँ हैँ या ये उन्हेँ भी भोगते हैँ? हाय रे लोकतंत्र! और
हाय रे निकम्मी पुलिस! हमारे महापुरुष अगर आज होते तो शर्म से मर गए
होते। इस मामले मेँ जितना बड़ा गुनाह उस अपराधी ने किया है उससे भी बड़ी
गुनहगार पुलिस है।

       इस संदर्भ मेँ मीडिया और खासतौर पर हिन्दुस्तान बधाई का पात्र है
जिसने इस पूरे प्रकरण पर सच की आवाज़ बुलंद की और जनजागरण किया। चूँकि
जनता की आवाज़ से ही पुलिस मजबूर हुई इसलिए मैँ उन भले मानसोँ के साथ ही
हिन्दुस्तान की पूरी यूनिट को साधुवाद देता हूँ और अपेक्षा करता हूँ कि
वे आगे भी ऐसे ही निर्भीक पत्रकारिता करते रहेँगे। यह प्रकरण तो एक बारगी
पत्र के लिए खुद की भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। हालाँकि
हिन्दुस्तान इसी बात के लिए जाना जाता है तो भी मैँ दोहराना चाहूँगा कि
वे अपनी इस कार्यशैली को बनाए रखेँ। मैँ कई वर्षोँ से हिन्दुस्तान का
नियमित पाठक हूँ और इसी को वरीयता देता हूँ क्योँकि यह पत्र मीडिया के
असली गुणधर्मोँ का संवाहक है। मैँने इसे चुना और मुझे अपने चुनाव पर गर्व
है। सभी को इसे प्रयोग मेँ लाना चाहिए।

        अंत मेँ एक अपील उस बच्ची के लिए जिसने मुझे द्रवित कर यह सब
लिखने को प्रेरित किया। आपसे गुज़ारिश है कि इस प्रकरण तथा संदेश को जमकर
प्रसारित करेँ ताकि शीर्ष स्तर तक इसकी गूँज पहुँचे और उचित कार्यवाही
हो। उस गुनहगार के लिए ऐसी सज़ा तजवीज़ हो जो मौत से भी बदतर हो, फाँसी तो
छोटी सज़ा है। जिसे सुनकर ही शैतान तक की रूह काँप जाए और भविष्य मेँ कोई
ऐसी घिनौनी करतूत करने के बारे मेँ सोचे भी न। आपके एक क्लिक से किसी को
इंसाफ और आत्मा को शांति मिल सकती है।
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'