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रविवार, 30 जून 2013

PAHADON PAR PRALAY

'हलीम' उवाच

उत्तराखंड में बीते दिनों आई तबाही ने मानव समाज के सामने एक गंभीर प्रश्न खड़ा कर दिया है। देश के तमाम पर्यावरणविदों व विज्ञानियों में इस आपदा के कारणों पर चर्चा हो रही है। वास्तव में उत्तराखंड में बादलों का फटना एक रासायनिक प्रक्रिया का दुष्प्रभाव है। वायुमंडल में कार्बन गैसों के बढ़ते घनत्व से बादलों में co2  का संघनन अधिक होता है जिस कारण वे जब वर्षा करते हैं तो भयंकर तबाही मचाते हैं।

           पिछले कुछ दशकों से विकास के नाम पर हमने न केवल वायुमंडल में कार्बन गैसों का अंधाधुंध उत्सर्जन किया है बल्कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर स्वयं के लिए खतरे भी पैदा कर लिए हैं। उत्तराखंड जैसे स्थान बेहद संवेदनशील हैं, जहाँ प्रकृति का थोड़ा सा असंतुलन पूरे पारस्थितिक तंत्र को ही गड़बड़ कर देता है और उत्तराखंड में तो पहाड़ों को मानो चुनौती देकर बड़े-बड़े आवासीय निर्माण हुए हैं; बाज़ार विकसित किये गए हैं। इन सभी कारकों का ही प्रभाव हमें प्रलयकारी बारिश एवं बाढ़ के रूप में देखने को मिला।

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