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शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

'हलीम' उवाच



आँख से तेरी यादों की बौछार गिरी,
पीने वाले दौड़े लगा शराब गिरी.

जब से तेरी आँखों से पीने की आदत हुई,

यारों की महफ़िल तबसे बर्बाद हुई.

रूठ गया साक़ी या निस्बत छूट गयी,

बहुत दिनों से नहीं कोई बरसात हुई.

रोज़ का मिलना और बिछड़ना शाम ढले तन्हाई में,

प्यार की घड़ियाँ अब तो बीती बात हुई.

रहोगी तन्हा जला करोगी मुझे पता है,
मगर करूँ क्या मुझे फकीरी रास लगी.

इश्क की लौ बुझती है कब इस समझौते से,
सुना है कल से उसके शहर में आग लगी.

-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'
 

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