आह
दूर तलक घनघोर सन्नाटा,
फैला काली रातों में.
सूरज आग उगलता, अग्नि
सी भर देता सांसों में.
पहले हवा जो छूकर तुझसे
खुशबू हुस्न की थी लाती,
अब सब कुछ बेज़ार लगे है
ऐसी उदासी है छाई.
फैला काली रातों में.
सूरज आग उगलता, अग्नि
सी भर देता सांसों में.
पहले हवा जो छूकर तुझसे
खुशबू हुस्न की थी लाती,
अब सब कुछ बेज़ार लगे है
ऐसी उदासी है छाई.

आँसू मेरे शब्द बने.
और भी कुछ चाहो तो बोलो,
क्यों रहते हो मौन सखे.
सौंप के सब कुछ अपना तुझको
मैं ऐसा कंगाल हुआ;
घर छूटा सब यार भी छूटे,
प्यार मेरा बदनाम हुआ.
आ बैठो सुनने इक दिन
तुम भी मेरी कराहों को.
मेरी न मानो चाहे यारों
तुम भी चख कर देखो तो.
प्रेम जिसे कहती है दुनिया,
मस्त वो ऐसी हाला है;
रोता पीने वाला फिर भी
जग इसमें मतवाला है.
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'
504, एच. आई. जी. रतन लाल नगर,
कानपुर. मो. 09450505825
haleem.nishedh@gmail.com
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'
504, एच. आई. जी. रतन लाल नगर,
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