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तबलीगी मरकज
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सोमवार, 26 नवंबर 2012
'हलीम' उवाच
कभी हथेली की सूजन कभी बड़ा सा जेब खर्च, मेरे मन का आधा साहस आधा डर थे बाबूजी। अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है, अम्मा की सारी सज-धज, सब जेवर थे बाबूजी। (पापा की 13वीं बरसी पर श्रद्धांजलि)
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