तबलीगी मरकज

बुधवार, 17 अगस्त 2011

अब तो जागो हिन्दुस्तानी...

'हलीम' उवाच

भाइयों देश जिस ओर जा रहा है वो रास्ता हम सबके लिए दुर्दिन लाने वाला है यह हम सब जानते हैं और मानते भी हैं पर करना कुछ नहीं चाहते. ऐसा क्यों? क्या यह देश या समाज उतना ही हमारा ही नहीं जितना हमारे शहीदों का था या उन देशद्रोही राजनेताओं का है जो इसे अपना बोलकर ही तो लूटते जा रहे हैं? फिर क्या कारण है कि हम तब पीछे रह जाते हैं जब हमें आगे रहना चाहिए.
आइये दोस्तों किसी पार्टी विशेष के पिछलग्गू न बनकर हम निरपेक्ष भाव से भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में अन्ना जी का समर्थन कर उनके हाथों को मजबूत करें. ताकि यह लड़ाई और तेज़ हो सके और हमारे लिए एक सुन्दर समाज बन सके. याद रखिये अगर आपने कुछ नहीं किया तो आपकी अगली नस्लें बुरे हालातों के लिए आपको ही कोसेंगी. इस शर्म को भूल जाईये कि लोग क्या कहेंगे और डर को भी निकाल दीजिये.
करना आपको यह है कि इस सन्देश को जम कर फैलाएं ताकि एक मुहिम चलाई जा सके. कितने ही बेकार के लिंक, मैसेज और फ़ोटोज़ हम शेयर किया करते हैं फिर क्या एक क्लिक अच्छे काम के लिए नहीं करेंगे? शुक्रिया दोस्तों फिर आऊंगा एक नए जोश और सन्देश के साथ.

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

'हलीम' उवाच


जश्न-ए-आज़ादी में...

आइये महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को,
जश्न-ए-आज़ादी में तब मैं ले चलूँगा आपको.

मर गए लाखों-करोड़ों और  भी मरने अभी,
क्या चुका सकते हो कीमत जान की उनकी कभी.

चौंसठ बरस से ढोंग जो अब तक सिखाते आये  हो,
अर्थ जीने का वतन में फिर भी समझ न पाए हो.

मनुज अपने कर्म से डगमग भटकता खो रहा,
स्वर्ग जैसी भूमि पर क्या-क्या न अधरम हो रहा.

देश में हर रोज़ पांचाली उघारी जा रही,
या अहिंसा की यहाँ पर नथ उतारी जा रही.

हैं तरसते जिस्म कितने एक लंगोटी के लिए,
बेचती है लाज औरत आज रोटी के लिए.

बिक गया हर हाथ संसद बन चुकी बाज़ार है,
हर तरफ नफरत बढ़ी हर हाथ में तलवार है.

धर्म नैतिकता के ठेकेदार सब बैठे जमा,
चोर बनता संत और मासूम झेले मुकदमा.

सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को,
हर सियासत चाहने वालों को और सरकार को.

मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आयें आज इस जश्न में,
'हिंद' का कैसे भला हो? तर्क दें इस प्रश्न में.

-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'